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________________ जैन कथा कोष ६५ ४२. कनकमंजरी (चित्रकार कन्या) क्षितिप्रतिष्ठितपुर नगर में राजा जितशत्रु राज्य करता था। उसने एक चित्रशाला बनवाने का निश्चय किया। निश्चय के अनुसार देश-विदेशों के चित्रकार बुलाये गये। राजा ने सभी चित्रकारों को बराबर-बराबर स्थान चित्र बनाने के लिए बता दिया। चित्रकारों ने काम शुरू कर दिया। चित्रशाला विविध प्रकार के चित्रों से सुसज्जित होने लगी। उन चित्रकारों में चित्रांगद नाम का एक वृद्ध चित्रकार था। वह वृद्ध तो था, लेकिन उसकी कला में जादू था। उसके चित्र बड़े सजीव बनते थे। उसकी एक युवा पुत्री थी। नाम था उसका कनकमंजरी। कनकमंजरी को भी चित्रकारी का अच्छा ज्ञान था। वह भी सजीव और अद्भुत चित्र बनाती थी। उसकी कला-कुशलता भी सराहनीय थी। वह नित्य अपने पिता को भोजन देने आया करती थी। नित्य की भाँति एक बार वह अपने पिता के लिए भोजन ला रही थी, तभी राज-मार्ग पर एक घुड़सवार बड़ी तेजी से घोड़ा दौड़ाते हुए निकला । स्त्रीपुरुष दौड़कर एक ओर हो गये। कई बच्चे तो उसकी चपेट में आते-आते बाल-बाल बचे। कनकमंजरी भी एक ओर खड़ी हो गई। उसे घुड़सवार की लापरवाही पर बड़ा क्षोभ हुआ। जब वह चित्रशाला पहुँची तो उसका पिता यह कहकर चल दिया कि 'अभी शरीर-चिन्ता सें-निपटकर आता हूँ।' अब कनकमंजरी बैठी-बैठी क्या करे? अपने पिता के लिए नियत स्थान पर उसने मयूरपंख का चित्र अंकित कर दिया। मयूरपंख ऐसा बना मानो सचमुच का ही हो। ___कनकमंजरी उसे देखकर मन-ही-मन हर्षित हो रही थी। तभी राजा जितशत्रु भी चित्रशाला का निरीक्षण करता हुआ आ गया। उसकी दृष्टि मयूरपंख पर पड़ी तो उसने भी यही समझा कि किसी ने सचमुच का मयूरपंख यहाँ रख दिया है। उसने आगे बढ़कर दीवार से मयूरपंख उठाने की कोशिश की तो उसका हाथ दीवार से टकराया और उसके नाखूनों में चोट लगी। राजा झेंप गया और राजा की इस चेष्टा पर कनकमंजरी खिलखिलाकर हँस पड़ी। काफी देर तक हँसती रही। फिर बोली—'आज मेरी खाट के चारों पार्य पूरे
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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