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________________ जैन कथा कोष ५६ कैसे? वह दोहद-पूर्ति-हेतु चिन्तातुर रहने लगी। भीम को अपनी पत्नी की मनोव्यथा का जब पता लगा, तब रात्रि के समय गौशाला में छिपकर गौ को मारकर उसका माँस ले आया। उत्पला ने मद्य (शराब) के साथ उस माँस को बहुत शौक से खाकर अपना दोहद पूरा किया। सवा नौ महीने बाद उसके एक पुत्र पैदा हुआ। पुत्र ने पैदा होते ही इतनी जोर से ध्वनि की, जिसे सुनकर अनेक गौ आदि पशु संत्रस्त होकर इधर-उधर दौड़ने लगे। इस कारण इसका नाम गौत्रासक (गोत्रासिया) पड़ गया। यह बड़ा होकर बहुत ही क्रूरकर्मी, अधर्मिष्ठ बना। नगरजन संत्रस्त हो उठे। राजा ने सोचा-यदि इसके कंधों पर कुछ जिम्मेदारी डाल दी जाए तो नगर के उत्पात कुछ कम हो जायेंगे। यह सोचकर गौत्रासक को उसने अपना सेनापति बना दिया। तलवार हाथ लगने पर बन्दर कब चंचल नहीं बनता? उसकी नृशंसता और बढ़ गई। रात को प्रतिदिन तलवार लेकर गौशाला में जाता तथा पशुओं को मारकर माँस खाता । इस प्रकार पाप-कर्म करते हुए उसने दुस्सह कर्मों का बंध किया और मरकर दूसरी नरक में गया। दूसरी नरक से निकलकर विजयमित्र सेठ के यहाँ सुभद्रा का अंगजात बना, पर माता ने उसे उकुरड़ी पर डलवा दिया। कुछ समय बाद उसे अपने पास पुनः मँगवा लिया, पर उसका नाम 'उज्झितकुमार' पड़ गया। बड़ा होकर उज्झितकुमार बुरी तरह से दुर्व्यसनों के चंगुल में फंस गया। ऐसा कौन-सा दुर्व्यसन था, जो इसने नहीं अपनाया हो? इसी नगर में 'कामध्वजा' नामक एक वेश्या रहती थी। उसके यहाँ कामान्ध बना रहने लगा। यद्यपि वह वेश्या राजवेश्या थी। राजा के द्वारा प्रतिदिन उसे एक हजार स्वर्णमुद्राएँ मिलती थीं, पर प्रेम अंधा होता है। वह भी उज्झितकुमार पर पूर्णतया आसक्त थी। संयोग ऐसा बना कि राजा की रानी के योनि-शूल की वेदना हो गई, इसलिए राजा ने उसे छोड़कर इस वेश्या को अपने अन्तःपुर में रख लिया तथा उसे अपनी उपपत्नी बना लिया। उज्झितकुमार देखता ही रहा, परन्तु करे भी क्या? वेश्या पर आसक्त बना वह मौका पाकर राजमहलों में पहुँचकर वेश्या के साथ काम-क्रीड़ा करने लगा। राजा भी अकस्मात् उसी समय वहाँ आ गया। उसे वहाँ देखकर उत्तेजित हो उठा और तत्क्षण पकड़ने का आदेश दिया। उसे पकड़कर उसके नाक-कान कटवा दिये और बुरा हाल करके नगर में घुमाने लगे। राजपुरुष उसके शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े करके उसको खिलाते, ऊपर से बुरी तरह से मारते हुए शहर के बाहर ले जा रहे थे।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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