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________________ ५८ जैन कथा कोष इसका नाम 'कंस' रख दिया। बड़ा होकर यह बहुत ही उद्दण्ड और उच्छृखल बना। इसके नटखटपन से बेचारे 'सुभद्र' सेठ के नाकों में दम हो आया। अपनी बला टालने के लिए 'सुभद्र' ने 'कंस' को 'वसुदेव' के यहाँ नौकर रखवा दिया। वसुदेव ने इसे अस्त्र-शस्त्र विद्याएँ सिखाईं। यह शिक्षा कंस की रुचि के अनुकूल थीं। उसने शीघ्र ही सीख ली तथा अपनी कार्यजा शक्ति से वसुदेव के पास अपना अच्छा स्थान बना लिया। ___ एक बार महाराज जरासन्ध के प्रबल शत्रु सिंहरथ को पकड़ने वसुदेव कंस के साथ गये। वहाँ कंस ने उस दुर्धर और अजेय माने जाने वाले सिंहरथ को पकड़ लिया। इससे प्रसन्न होकर जरासन्ध ने अपनी पुत्री जीवयशा का विवाह कंस के साथ कर दिया। अब तो कंस प्रतिवासुदेव जरासन्ध का जामाता बन गया। पर जब इस गुप्त रहस्य का कंस को पता लगा कि मैं सुभद्र सेठ का आत्मज न होकर मथुरा-नरेश उग्रसेन का आत्मज हूँ और मुझे यों ही नदी में बहाया गया है तब तो उसे कुपित होना ही था । जरासन्ध से करमोचन में उसने मथुरा का राज्य मांग लिया और तत्क्षण मथुरा आकर अपने जन्मदाता पिता उग्रसेन को पिंजरे में बन्द करके मथुरा के गोपुर में लटका दिया। __ कंस की भयंकर नृशंसता के फलस्वरूप ही श्रीकृष्ण ने कंस को मारा और उग्रसेन को मुक्त किया। उग्रसेन मथुरा के पुन:स्वामी बन गये। उग्रसेन के कंस के अतिरिक्त एक पुत्र तथा दो पुत्रियाँ और भी थीं। पुत्र का नाम था अतिमुक्तक तथा पुत्रियों के नाम थे सत्यभामा और राजीमती। अतिमुक्तक ने तो कंस के राज्यगद्दी पर बैठते ही श्रामणी दीक्षा ले ली थी और तप करके वे मुक्त हो गये । उग्रसेन जरासन्ध के भय से श्रीकृष्ण के साथ ही मथुरा को छोड़कर द्वारिका में आ बसे और वहीं रहने लगे। -आवश्यक मलयगिरी वृत्ति ३८. उज्झितकुमार हस्तिनापुर के महाराज 'सुनंद' के बहुत विशाल गौशाला थी, जिसमें बहुत-सी गायें सुख से रह रही थीं। उसी नगर में भीम नाम का एक गुप्तचर था जिसकी पत्नी का नाम ‘उत्पला' (थप्पला) था। 'उत्पला' गर्भवती हुई। उसे गौ की गर्दन का माँस खाने का मानसिक संकल्प (दोहद) हुआ। परन्तु गौमांस मिले
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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