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________________ ४४ जैन कथा कोष ३२. आर्यरक्षित 'दशपर' नगर में 'सोमदेव' नाम का ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम 'सोमा' था और पुत्र का नाम 'रक्षित' था। रक्षित की शिक्षा पाटलिपुत्र में हुई। जब वह विद्याध्ययन करके लौटा तो सबने उसका सम्मान किया; लेकिन माता सोमा उदास रही। रक्षित ने माता से उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने कहा.-'पुत्र ! यदि तुम दृष्टिवाद का अध्ययन करते तो मुझे प्रसन्नता होती; क्योंकि जितनी विद्याएँ तुमने पढ़ी हैं, वे सब तो संसार को बढ़ाने वाली ही हैं, एकमात्र दृष्टिवाद का ज्ञान ही संसार से पार उतारने वाला है।' पुत्र ने पूछा'माता ! दृष्टिवाद का ज्ञान मुझे कहाँ प्राप्त होगा? कौन आचार्य इसको जानने वाले हैं?' माता ने आचार्य तोषलीपुत्र का नाम बता दिया। रक्षित आचार्य तोषलीपुत्र के पास पहुँचा और उनसे दृष्टिवाद का ज्ञान प्रदान करने की विनयपूर्वक प्रार्थना की। आचार्यश्री ने कहा—'दृष्टिवाद विशिष्ट प्रकार का ज्ञान है। इसका पारायण करने के लिए गृहस्थ त्यागकर श्रमण बनना आवश्यक है। विशिष्ट प्रकार की तपस्याएँ और साधनाएँ करनी पड़ती हैं, तभी दृष्टिवाद को हृदयंगम किया जा सकता है।' आचार्यश्री के इन शब्दों को सुनकर रक्षित ने दीक्षित होने की सहमति प्रकट कर दी, साथ ही कहा—'गुरुदेव ! यदि मैं यहीं रहूँगा तो संभवतः राजा एवं मेरे परिवारी जन मुझे वापस गृहस्थवास में ले जायें, इसलिए प्रव्रजित करने के उपरान्त शीघ्र ही कहीं और भेज दें।' ____ आचार्य तोषलीपुत्र ने रक्षित की यह प्रार्थना स्वीकार कर ली और दीक्षा देने के तुरन्त बाद वहाँ से विहार कर दिया। गुरु-कृपा से रक्षित ने शास्त्राभ्यास किया। विशिष्ट ज्ञान-प्राप्ति के लिए गुरु ने उन्हें आर्य वज्रस्वामी के पास भेजा। मार्ग में स्थविरकल्पी आचार्य भद्रगुप्त सूरि के उन्होंने दर्शन किये। भद्रगुप्त सूरि की आयु थोड़ी ही शेष रह गई थी। उन्होंने अनशन ग्रहण कर लिया । अन्तिम समय के अनगारी संथारे में आर्य रक्षित उनकी सेवा करते रहे। उनके समाधिमरण के पश्चात् ये आर्य वज्रस्वामी के पास पहुँचे। __ आर्य वज्रस्वामी दृष्टिवाद के दश पूर्वो के ज्ञाता थे। उनके नेश्राय में रहकर ये पूर्वो का अध्ययन करने लगे। नौ पूर्वो का अध्ययन पूरा हो चुका था और दशवें पूर्व का अध्ययन चल रहा था, तभी इनका छोटा भाई फल्गुरक्षित इन्हें
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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