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________________ ३८४ जैन कथा कोष ६. श्री स्वयंप्रभ स्वामी आप छठे विहरमान तीर्थकर हैं। धातकीखण्ड द्वीप के वपु नामक विजय की विजया नगरी में मित्रसेन राजा के यहाँ स्वयंप्रभ स्वामी का जन्म हुआ। इनकी माता का नाम सुमंगला है। आपके चन्द्र का चिह्न है। पाँच सौ धनुष की ऊँचाई है। वीरसेना नाम की रूपवती कन्या के साथ युवावस्था में आपका विवाह हुआ। __वार्षिक दान देकर आपने तिरासी लाख पूर्व की आयु में संयम स्वीकार किया। केवलज्ञान प्राप्त करके अपनी दिव्य वाणी के द्वारा जन-जन का कल्याण करते हुए आप विचर रहे हैं। ७. ऋषभानन स्वामी आप सातवें विहरमान तीर्थंकर हैं। धातकीखण्डद्वीप की पूर्व महाविदेह में वपु नामक विजय में सुसीमा नगरी में आपका जन्म हुआ। पिता का नाम कीर्तिराय और माता का नाम वीरेसना है। कंचन वर्णी काया और सिंह का चिह्न देखकर माता-पिता ने पुत्र का नाम रखा ऋषभानन । युवावस्था में जयादेवी के साथ आपका विवाह हुआ। ___ तिरासी लाख पूर्व की आयु में आप दीक्षित हुए। केवलज्ञान प्राप्त किया और तीर्थकर बने । वर्तमान में आप वपु विजय में विचरण कर रहे हैं। ८. अनन्तवीर्य स्वामी आप आठवें विहरमान तीर्थकर हैं। धातकीखण्ड के पश्चिम महाविदेह में एक नगरी है वीतशोका, जो कि नलिनावती विजय में है। उस नगरी में आपका जन्म हुआ। आपके पिता का नाम मेघराज और माता का नाम मंगलावती है। गजचिह्नयुक्त पुत्र का नाम अनन्तवीर्य रखा गया। इनकी पत्नी का नाम विजयादेवी है। दीक्षित होकर तथा केवलज्ञान प्राप्त करके तीर्थकर बने और वर्तमान में नलिनावती विजय में विराजमान हैं। ६. सूरप्रभ स्वामी धातकीखण्डद्वीप के पyमहाविदेह में पुष्कलावती विजय है। उसकी पुण्डरीकिणी नगरी में नौवें विहरमान तीर्थकर सूरप्रभ स्वामी का जन्म हुआ। आपके पिता
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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