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________________ जैन कथा कोष ३८३ तिरासी लाख पूर्व की आयु में आपने दीक्षा ली। केवलज्ञान प्राप्त करके जनकल्याण कर रहे हैं। आप इस समय वपु विजय में विराजमान हैं। ३. श्री बाहुस्वामी ये तीसरे विहरमान तीर्थकर हैं। इनका जन्म जम्बूद्वीप की पूर्व महाविदेह में वच्छ नाम की विजय में सुसीमापुरी में हुआ। आपके पिता का नाम महाराज सुग्रीव और माता का नाम विजयारानी है। मृग लांछन युक्त इस राजकुमार का नाम बाहु कुमार रखा गया। युवावस्था में मोहना देवी के साथ में विवाह हुआ। तिरासी लाख पूर्व की आयु में आपने दीक्षा ली। केवलज्ञान प्राप्त किया और वच्छ विजय में विचरकर जन-जन का कल्याण कर रहे हैं। ४. श्री सुबाहु स्वामी ये चौथे विहरमान तीर्थकर हैं। जम्बूद्वीप की पश्चिम महाविदेह में वपु नाम की विजय की वीतशोका नाम की नगरी में आपका जन्म हुआ। आपके पिता का नाम निषढ़ तथा माता का नाम सुनन्दा है। आपके वानर का लांछन था। आपकी पत्नी का नाम 'किंपुरषा' है। तिरासी लाख पूर्व की आयु में आप भोगों से उपरत होकर संयमी बने । केवलज्ञान प्राप्त किया। वर्तमान में आप वपु विजय में धर्म-प्रचार करते हुए विराजमान हैं। ५. श्री सुजात स्वामी आप पाँचवें विहरमान तीर्थकर हैं। धातकीखण्डद्वीप के पूर्व महाविदेह में एक विजय है जिसका नाम है 'पुष्कलावती'। उस 'पुष्कलावती' विजय की पुण्डरीकिणी नगरी में इन पाँचवें विरहमान तीर्थंकर का जन्म हुआ। आपके पिता का नाम देवसेन और माता का नाम देवसेना है। सुजातकुमार का जयसेना नाम की राजकन्या से विवाह हुआ। इनके सूर्य का चिह्न है। स्वर्ण के समान तन की कान्ति है। तिरासी लाख पूर्व तक घर में रहकर संयमी बने । केवलज्ञान प्राप्त किया। वर्तमान में पुष्कलावती विजय में विचर रहे हैं।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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