SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन कथा कोष ३५७ तैयार होना था? सभी ने उसके साथ विवाह करने से इन्कार कर दिया और उसकी विवाहेच्छा के लिए उसे धिक्कारा | जमदग्नि राजकन्याओं के इस व्यवहार से और भी कुपित हो उठा। क्रुद्ध होकर ६६ कन्याओं को अपने तपोबल से कुब्जा बना दिया। कुछ कन्याएं इधर-उधर खेल रही थीं। उन सब में एक छोटी कन्या थी, जिसका नाम था 'रेणुका'। ऋषि ने उसे केलों का प्रलोभन देकर फुसला लिया । अपने साथ चलने के लिए हाँ भरवा ली। जितशत्रु वचनबद्ध था। उसने 'रेणुका' मुनि को भेंट कर दी। राजा की प्रार्थना से ऋषि ने कन्याओं का कुबड़ापन ठीक कर दिया और रेणुका को लेकर अपने आश्रम को चला गया। ___ 'रेणुका' धीरे-धीरे युवा हुई और तापस वृद्ध हो गया। फिर भी दोनों का दाम्पत्य सम्बन्ध था। एक बार ऋषि ने 'रेणुका' से कहा—'मैं एक 'चरु' की साधना करना . चाहता हूं, जिससे तेरे एक ब्राह्मणोत्तम पुत्र हो जाएगा।' रेणुका ने कहा-'आप दो चरुओं की साधना करें। ब्राह्म-चरु मेरे लिए तथा एक क्षात्र-चरु महाराज 'अनन्तवीर्य' की पत्नी, मेरी बहन के लिए।' 'रेणुका' के कहने पर ऋषि ने वैसी ही साधना करके दो चरुओं की साधना की। ___'रेणुका' ने जब अपने भविष्य के बारे में सोचा तब मन में आया—ऋषि की तपस्या से मेरे पुत्र तो तेजस्वी होगा, परन्तु होगा तो ब्राह्मणधर्मा ही। व्यर्थ ही जंगल की खाक छानता हुआ भटकता फिरेगा। ऐसे पुत्र से क्या लाभ? इसलिए अच्छा हो कि मेरे क्षात्रधर्मा पुत्र हो । मैं राजमाता बन जाऊँगी। यही सोचकर उसने उन चरुओं को बदल दिया। क्षात्रधर्मा चरु अपने पास रख लिया और ब्राह्मणधर्मा चरु बहन के पास भेज दिया। रेणुका के पुत्र हुआ जिसका नाम 'राम' रखा गया किन्तु यह परशुराम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बहन के पुत्र हुआ, उसका नाम 'कृतवीर्य' रखा गया । 'राम' आश्रम में और 'कृतवीर्य' राजमहल में बड़ा होने लगा। एक बार एक विद्याधर भ्रष्ट होकर वन में गिर पड़ा। 'राम' ने उसकी परिचर्या की। उसने संतुष्ट होकर उसे पारशवी (परशु सम्बन्धी) विद्या दी। इससे राम 'परशुराम' के नाम से विख्यात हुआ। एक बार 'रेणुका' बहन से मिलने 'हस्तिनापुर' गई। वहाँ उसका उसके
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy