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________________ ३४० जैन कथा कोष नीचे गिर जाती है वैसे ही कुछ कर्म जीव-प्रदेशों का स्पर्श करके बद्ध होते हैं और वे भी कालान्तर में विलग हो जाते हैं। स्पृष्टबद्ध निकाचित—कुछ कर्म जीव-प्रदेशों के साथ गाढ़ रूप में बन्ध प्राप्त करते हैं और वे भी कालान्तर में विलग हो जाते हैं। यह सारा प्रतिपादन सुनकर गोष्ठामाहिल का मन विचिकित्सा से भर गया। वह बोला—'कर्म को जीव के साथ बद्ध मानने से मोक्ष का अभाव हो जाएगा। कोई भी प्राणी मोक्ष नहीं जा सकेगा। अतः सही सिद्धान्त यही है कि कर्म जीव के साथ स्पृष्ट होते हैं, बद्ध नहीं। क्योंकि कालान्तर में वे विलग हो जाते हैं और जो विलग होता है, वह एकात्मकता से बद्ध नहीं हो सकता। उसने अपनी शंका 'विंध्य' के सामने रखी। विंध्य ने कहा—आचार्य ने इसका अर्थ यही बताया है। गोष्ठामाहिल की विचिकित्सा की चिकित्सा नहीं हुई। वह फिर भी मौन रहा। एक बार नौवें पूर्व की वाचना में साधुओं के प्रत्याख्यान के प्रसंग में आया—यथाशक्ति और यथाकाल प्रत्याख्यान करना चाहिए। गोष्ठामाहिल ने सोचा—'अपरिमाण प्रत्याख्यान ही अच्छा है। परिमाण प्रत्याख्यान में वांछा का दोष उत्पन्न होता है। जैसे एक व्यक्ति परिमाण प्रत्याख्यान के अनुसार पौषधी उपवास करता है, किन्तु पौषधी उपवास का कालमान पूरा होते ही उसके खाने-पीने की आशा तीव्र हो जाती है। अतः परिमाण प्रत्याख्यान सदोष है। गोष्ठामाहिल ने अपने विचार पहले विंध्य के सामने रखे और फिर आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र के सामने रखे। आचार्य ने उसे समझाते हुए कहाअपरिमाण का अर्थ क्या है? यावत् शक्ति या भविष्य काल । यदि यावत् शक्ति का अर्थ स्वीकार करते हो तो हमारा ही मंतव्य स्वीकार हुआ। यदि भविष्यत् काल का अर्थ स्वीकार करते हो तो व्यक्ति यहाँ से मरकर देवरूप में उत्पन्न होता है। वहाँ सभी व्रतों के भंग का प्रसंग आएगा। अतः अपरिमाण प्रत्याख्यान का सिद्धान्त ठीक नहीं है। ____ गोष्ठामाहिल को यह बात नहीं जंची। वह अपने हठ पर अड़ा रहा। बहुत-बहुत समझाया, किन्तु नहीं समझा। अन्य स्थविरों से भी गोष्ठामाहिल ने पूछा। उन सबने भी आचार्य की बात का समर्थन किया, परन्तु फिर भी वह नहीं माना | तब संघ ने एकत्रित होकर देवता के लिए कायोत्सर्ग किया। देवता ने उपस्थित होकर पूछा—क्या आदेश है?
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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