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________________ जैन कथा कोष ३३६ घट-पट आदि अजीव हैं और छछूंदर की कटी हुई पूंछ नोजीव है। इस प्रकार अनेक युक्तियों द्वारा रोहगुप्त ने परिव्राजक को निरुत्तर कर दिया । राजा ने परिव्राजक को पराजित घोषित कर दिया। विजयी बने रोहगुप्त ने सारी बात आचार्य से कही। आचार्य ने कहा'तूने असत्य प्ररूपणा की है। अपनी भूल स्वीकार कर ।' किन्तु वह अपने हठ पर अड़ा रहा। आचार्य ने उसे समझाने कुत्रिकापण में गये । वहाँ तो संसार की सभी वस्तुएं मिल सकती हैं। जाकर तीन राशियों की तीन चीजें मांगीं । दुकानदार ने कहा—' -'नोजीव नाम का कोई भी पदार्थ संसार में नहीं है, तब मेरे यहाँ कैसे मिलेगा ?' फिर भी रोहगुप्त अपने हठ पर अड़ा रहा। तब आचार्य ने उसे संघ से अलग कर दिया। गोष्ठामाहिल 'दसपुर' नगर में राज- सम्मानित ब्राह्मण - पुत्र 'आर्यरक्षित' रहता था। जब वह अपने पिता से सारा ज्ञान पढ़ चुका, तब पाटलिपुत्र जाकर अनेक वेद-वेदान्तों का ज्ञान प्राप्त करके घर लौटा। माँ ने कहा- 'बेटा! सही ज्ञान प्राप्त करना हो तो आचार्य तोसलीपुत्र के पास जाकर सीखो।' उसने वहाँ संयम लेकर आचार्य के पास दृष्टिवाद का अध्ययन प्रारम्भ किया और तदनन्तर आर्य वज्र से नौ पूर्वो का अध्ययन सम्पन्न कर दसवें पूर्व के चौबीस यविक ग्रहण किए । आर्यरक्षित आचार्य बने । आचार्य आर्यरक्षित के तीन प्रमुख शिष्य थे— दुर्बलिका पुष्पमित्र, फगुरक्षित और गोष्ठामाहिल । आर्यरक्षित ने अपने अन्तिम समय में दुर्बलिका पुष्यमित्र को गण का भार सौंपा। एक बार आचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र अर्थ की वाचना कर रहे थे। उनके बाद 'विंध्य' उस वाचना का अनुभाषण कर रहा था । गोष्ठामाहिल सुन रहा था । उस समय आठवें कर्मप्रवाद के अन्तर्गत कर्म का विवेचन चल रहा था । वहाँ जीव के साथ कर्मों का बन्ध किस प्रकार होता है इसका समाधान देते हुए उन्होंने तीन प्रकार बताए स्पृष्ट— कुछ कर्म जीव प्रदेशों के साथ स्पर्श मात्र करते हैं और कालान्तर में स्थिति का परिपाक होने पर उनसे अलग हो जाते हैं। जैसे— सूखी दीवार पर फेंकी गई रेत । वह भीत का स्पर्श मात्र करके गिर जाती है । स्पृष्टबद्ध - जैसे गीली भीत पर फेंकी गई रेत कुछ चिपक जाती है, कुछ
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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