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________________ जैन कथा कोष ३२१ अबुद्ध जागरिका तथा तत्त्वज्ञ श्रावक का धर्मचिंतन सुदृष्ट (सुदर्शन) होने से सुदृष्ट जागरिका कहलाती है। सभी श्रावक भगवान के इस कथन को सुनकर शंख के प्रति विनत थे । गौतम स्वामी ने प्रभु से आगे पूछा- 'भगवन् ! शंख आपके पास साधु बनेगा?" प्रभु ने कहा—' नहीं बनेगा ।' गौतम — 'गृहस्थावस्था में कालधर्म प्राप्त करके कहाँ जायेगा?' भगवान् महावीर — 'यहाँ से प्रथम स्वर्ग में जायेगा । वहाँ से महाविदेहक्षेत्र में उत्पन्न होकर मोक्ष जायेगा । ' - भगवती, १२/१ १८८. श्रीदेवी 'राजगृही' में 'सुदर्शन' नाम का एक समृद्धिशाली गाथापति था । उसकी पत्नी का नाम 'प्रिया' था । प्रिया के एक पुत्री हुई, जिसका नाम रखा गया 'भूता' । पर 'भूता' जन्म से ही वृद्ध जैसी लगती थी । शरीर भी जीर्ण था । युवावस्था तो मानो उसके पास ही नहीं फटकी थी। इसलिए उसके साथ विवाह करने को कोई तैयार नहीं था । 'भूता' और उसके माता-पिता इसी चिन्ता में थे । उसी समय भगवान् ‘पार्श्वनाथ' का पर्दापण हुआ । प्रभु का उपदेश सुनकर 'भूता' का वैराग्य जगा । संयम लेने को तैयार हो गयी। माता-पिता से पूछकर संयम ले लिया । संयमी बनकर 'पुष्पचूला' नामक साध्वी के नेतृत्व में संयम साधना करने लगी। पर 'भूता' धीरे-धीरे शिथिलाचार की ओर बढ़ने लगी और शरीर की विभूषा में फंस गयी । गुरुणी ने उसे ऐसा करने के लिए टोका । पर उसे बुरा लगा वह स्वच्छन्द बन गयी और पृथक् स्थान में रहने लगी । वहाँ रहकर बेला-तेला आदि विविध तथा उग्र तप भी करती । यों कई वर्ष संयम का पालन करके मृत्यु पाकर प्रथम स्वर्ग में गयी । वहाँ श्रीदेवी नाम से उत्पन्न हुई । वहाँ से महाविदेह में उत्पन्न होकर निर्वाण प्राप्त करेगी । 1 - निरयावलिया ४ १८६. श्रीपाल - मैनासुन्दरी अंग देश की राजनगरी चम्पापुरी थी और इस देश का शासक था राजा सिंहरथ ।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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