SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१८ जैन कथा कोष १८५. शिवा महासती 'शिवा' महाराज 'चेटक' की चौथी पुत्री थी। यह उज्जयिनीपति 'चण्डप्रद्योत' की पटरानी थी। महाराज 'चण्डप्रद्योत' का परम प्रीतिपात्र प्रधानमंत्री भूदेव' 'शिवा' पर आसक्त हो गया। अन्तःपुर आने-जाने की इसे छूट थी ही। एक दिन मौका देखकर रानी के सामने अपनी कुत्सित भावना उस निर्लज्ज ने रख ही दी। 'शिवा' ने उसे बहुत बुरी तरह से फटकारा, दुत्कारा तथा राजदण्ड का भय दिखलाया। वह विफल होकर अपने घर आ गया। कहीं राजा को पता लग जायेगा तो क्या होगा? इस भय से अस्वस्थ हो गया। राजा को इसकी रुग्णता का संवाद मिला तो महारानी को साथ लेकर राजा उसके यहाँ पहुँचा। राजा और रानी को देखकर 'भूदेव' शिवा के पैरों में गिरकर पश्चात्ताप करने लगा। रानी ने सान्त्वना देते हुए कहा—भूल होना कोई बड़ी बात नहीं है। सँभलना देवत्व है। चिन्ता मत करो, भविष्य के लिए सजग रहो। एक बार 'उज्जयिनी' में भीषण अग्नि का प्रकोप हो गया। अनेकानेक प्रयत्न करने पर भी अग्नि की लपटें शान्त नहीं हो रही थीं; प्रत्युत बढ़ती जा रही थीं। उस समय महासती 'शिवा' ने अपने महल पर चढ़कर महामन्त्र नमस्कार पढ़कर कहा—'यदि मैंने पति के सिवा किसी अन्य पुरुष की स्वप्न में भी इच्छा नहीं की हो तो यह अग्नि-ज्वाला शान्त हो जाए।' यों कहकर चारों ओर जल छिड़का। सहसा अग्नि शान्त हो गई। महासती शिवा के शील की महिमा सभी ओर गूंजने लगी। __ महासती शिवा ने भगवान् महावीर के पास संयम लेकर सिद्धगति की प्राप्ति की। -आवश्यकनियुक्ति, १२८४ जन्मस्थान १८६. शीतलनाथ भगवान् सारिणी भदिलपुर दीक्षा-तिथि दृढ़रथ केवलज्ञान तिथि नन्दा निर्वाण तिथि माघ कृष्णा १२ चारित्र पर्याय पपता माघ कृष्णा १२ पौष कृष्णा १४ वैशाख कृष्णा २ २५ हजार पूर्व माता जन्मतिथि
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy