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________________ ३१६ जैन कथा कोष .. ले लीं। मनचाहे सोनैये व्यापारियों को दे दिये । व्यापारी सेठ की दिव्य ऋद्धि देखकर दंग रह गए। भद्रा की पुत्रवधुओं ने उन रत्नकम्बलों के टुकड़ों से पैर पोंछकर पीछे नाली में फेंक दिया। वहाँ की सफाई करने वाली महतरानी ने उन टुकड़ों को उठा लिया। एक टुकड़ा ओढ़कर महाराज श्रेणिक के यहाँ सफाई करने गई। महारानी चेलना ने रत्नकम्बल के खण्ड को देखा। जब सारा भेद खुला, तब श्रेणिक राजा को उलाहना देते हुए कम्बल लेने के लिए कहा। महाराज ने व्यापारियों से पूछा तो उन्होंने बताया—'शालिभद्र के यहाँ भद्रा सेठानी ने सारी कम्बलें ले लीं।' राजा ने शालिभद्र को देखना चाहा। भद्रा के नम्र निवेदन पर महाराज श्रेणिक सपरिवार शालिभद्र के यहाँ आए। भद्रा ने उनका हार्दिक स्वागत किया। चौथी मंजिल में महाराज को सिंहासन पर बिठाकर भद्रा ने ऊपर जाकर पुत्र को आवाज दी—'बेटा ! नीचे आओ। आज अपने घर नाथ आए हैं।' शालिभद्र ने बात सुनकर कहा—'नाथ आए हैं तो क्या खास बात है। खरीदकर भण्डार में डाल दो। आज तक कभी आपने मुझे किसी बात के लिए नहीं पूछा । आज पूछने जैसी क्या बात आ गई?' भद्रा—यह क्या बच्चों जैसी बातें करता है। महाराज श्रेणिक हमारे मालिक हैं, नाथ हैं। उनके दर्शन करो। शालिभद्र नाथ का 'नाम' शब्द सुनकर चौंका और सोचा—मेरे पास इतना ऐश्वर्य है, फिर भी मेरे सिर पर दूसरे नाथ हैं, मैं परवश हूँ। यों विचार करता हुआ नीचे आया। महाराज श्रेणिक को प्रणाम किया। महाराज ने कुमार को गोद में बैठाकर प्यार दिया। पर यह क्या? राजा ने शालिभद्र के चेहरे की ओर देखा तो पाया कि उसके मुंह पर पसीना ही पसीना हो गया था। सारा शरीर पसीने से ऐसे तरबतर हो गया मानो महाराज श्रेणिक की गोद भी शालिभद्र को अंगीठीसी प्रतीत हुई। राजा ने विदा दी। शालिभद्रकुमार ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते चिन्तन में भी चढ़ने लगा। अपने-आपको असहाय अनुभव किया कि सहसा जाति-स्मरणज्ञान हो गया। जाति-स्मरणज्ञान से उसने देखा—मैंने संगम ग्वाले के भव में मासोपवासी मुनि को खीर का जो दान दिया था, लगता है—उस खीर ने ही मेरी तकदीर बदल दी, पर मेरी साधना में अवश्य ही कुछ कमी रही है, इसलिए मैं परवश हूँ। यों वैराग्य जगा और साधु बनने को उद्यत हो गया। एक-एक पत्नी को प्रतिदिन छोड़ने लगा।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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