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________________ १४ जैन कथा कोष निकलने नहीं दिया, आमोद-प्रमोद मनाने का आग्रह करती रही । तब मुनिश्री ने गंभीर वाणी से कह दिया- 'जिसके निमित्त यह उत्सव हो रहा है, उसी का सातवाँ पुत्र तुम्हारे पति का काल होगा । ' यह सुनते ही जीवयशा का नशा हिरन हो गया और मुनि अतिमुक्तक बाहर निकल गये । उस समय तो परिस्थितिवश मुनि अतिमुक्तक के मुख से ऐसे शब्द निकल गये, लेकिन बाद में उन्हें बहुत पश्चात्ताप हुआ । उन्होंने इस वचन- दोष की सम्यक् आलोचना की और तपस्या करके उसी भव में मुक्त हुए । — त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ८ १२. अंतूकारी भट्टा अवन्ती नगरी में धन नाम का श्रेष्ठी निवास करता था । उसकी पत्नी का नाम कमलश्री था । कमलश्री ने आठ पुत्रों के बाद एक पुत्री को जन्म दिया। आठ पुत्रों के बाद पुत्री होने से माता-पिता को बहुत खुशी हुई। आठों भाई फूले न समाये। श्रेष्ठी ने उसका नाम भट्टा रखा । भट्टा पिता को इतनी प्यारी थी कि उसने सबसे कह दिया- ' इसे कोई 'तू' कहकर नहीं पुकारेगा। इसलिए उसका नाम अतूंकारी भट्टा पड़ गया। माता-पिता और भाईयों के लाड़-प्यार में अतूंकारी भट्टा बढ़ने लगी। उसने स्त्रियोचित ६४ कलाएँ पढ़ीं। उसका रूप रति-रंभा जैसा था। लेकिन अतिशय लाड़-प्यार से उसके अन्दर अहंकार का दुर्गुण प्रवेश कर गया था। वह अपनी ओर से किसी को 'तू' कहती नहीं थी और किसी से 'तू' सुनना भी नहीं चाहती थी। साथ ही वह चाहती थी कि सभी उसकी आज्ञा का पालन करें। यद्यपि वह किसी को अनुचित आज्ञा नहीं देती थी, लेकिन अपनी आज्ञा की अवहेलना भी नहीं सह सकती थी । यह दुर्गुण उसमें आयु के साथ-साथ बढ़ता गया। अतूंकारी भट्टा युवती हो गई। माता-पिता उसके विवाह की चिन्ता में लगे और योग्य वर की खोज करने लगे। इस बात से भट्टा भी अनजान नहीं थी । उसने माता से स्पष्ट शब्दों में कह दिया- 'मैं विवाह उसी वर के साथ करूंगी, जो मेरी आज्ञा का पालन करेगा ।' ये बात लोक-रीति के विरुद्ध थी । माता ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह अपनी हठ पर अड़ी रही । आखिर माता-पिता 1
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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