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________________ जैन कथा कोष २८१ वह उसे भौंयरे में रखती है। वह जो भी खाता है उससे जो रुधिर-मांस बनता है, वह भी शरीर से झरता रहता है और वह उस रुधिर-मांस को पुन:पुनः खाता रहता है। वह जन्म से ही अंधा, गूंगा, बहरा और लूला है। नरक से भी अधिक दुर्गन्ध उठती रहती है। वह मनुष्य केवल नाम का है, है तो लोढ़े का आकार ।' - 'गौतम' स्वामी प्रभु की आज्ञा लेकर उसे देखने गये। 'मृगावती' ने सोचा—इस गुप्त रहस्य का इन्हें कैसे पता लगा? 'गौतम' ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए भगवान् 'महावीर' का नाम बताया। 'मृगारानी' 'गौतम' स्वामी को भौंयरे के पास ले गई। उसे देखकर 'गौतम' स्वामी को बहुत आश्चर्य हुआ। कर्मों की विचित्र गति का चिन्तन करते हुए प्रभु के पास आए और उसका पूर्वभव पूछा। ___ प्रभु ने इसके सारे क्रूर कर्मों का कच्चा चिट्ठा सबके सामने रख दिया। भविष्य के प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु ने कहा—'यह छत्तीस वर्ष की आयु में मर कर सिंह होगा। वहाँ से मरकर प्रथम नरक में जाएगा। वहाँ से निकलकर नेवला होगा। वहाँ से दूसरी नरक में जाएगा। वहाँ से निकलकर पक्षी होगा। वहाँ से तीसरी नरक में जाएगा। इस प्रकार यह सातों नरक में जाएगा और अनन्त काल तक संसार में परिभ्रमण करेगा। अन्त में महाविदेह क्षेत्र से मुक्त होगा।' -विपाकसूत्र, १ १६०. मृगावती महासती 'मृगावती' वैशाली गणतन्त्र के गणनायक महाराजा 'चेटक' की पुत्री थी। कौशाम्बीपति 'शतानीक' के साथ राजकुमारी का महाराज चेटक ने पाणिग्रहण किया था। महाराज 'शतानीक' अपने यहाँ एक चित्रशाला बनवा रहे थे। यक्ष से वर प्राप्त करके ऐसा चित्रकार वहाँ चित्र बनाने लगा जो किसी के अंग का एक भाग देखकर भी सही चित्र बना सकता था। राजमहलों में खड़ी महारानी के पैर का एक अंगूठा देखकर उसने चित्रशाला में महारानी क चित्र बना दिया। ज्योंही चित्र तैयार हुआ, जांघ पर काले रंग का एक धब्बा पड़ गया। चित्रकार ने उसे मिटाना चाहा पर मिटा नहीं। 'हो न हो यहाँ तिल है,' यह सोचकर चित्रकार ने वैसे ही रहने दिया। ..
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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