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________________ १२ जैन कथा कोष बिल्कुल भी नहीं दुखता। मुझे मालिश की कोई जरूरत नहीं है । ' दूसरे दिन फिर फलिहमल्ल और मच्छियमल्ल की कुश्ती हुई। फलिहमल्ल तो तरोताजा बन चुका था, लेकिन मच्छियमल्ल का शरीर जगह-जगह से दुख रहा था। उसका सारा शरीर दर्द के कारण सुस्त हो रहा था । फलिहमल्ल ने शीघ्र ही उसे परास्त कर दिया । परिणामस्वरूप फलिहमल्ल को राजा सिंहगिरि ने भी खूब इनाम दिया और विजय-पताका भी दी। जब वह विजयी होकर उज्जयिनी पहुँचा तो वहाँ भी राजा प्रजा ने उसका खूब सम्मान किया । इसी प्रकार सरल चित्त से जो अपने दोषों को न छिपाकर गुरु को साफसाफ बता देते हैं, वे लौकिक और पारलौकिक दोनों क्षेत्रों में सफल होते हैं, जैसे फलिहमल्ल हुआ । - धर्मोपदेश माला, विवरण, कथा १४६ -उत्तराध्ययन टीका १०. अतिमुक्तक कुमार (मुनि) 'अतिमुक्तक' पोलासपुर के महाराज 'विजय' के पुत्र तथा माता ' श्रीदेवी' के आत्मज थे। अभी उनकी बाल्यावस्था ही थी । एक दिन कुमार चौक में खेल रहे थे, उस समय उन्होंने भगवान् महावीर के प्रथम गणधर गौतम स्वामी को भिक्षार्थ उधर से जाते देखा। जैन मुनि को देखकर कुमार ने साश्चर्य पूछाआप कौन हैं? कहाँ जा रहे हैं? गौतम स्वामी ने कहा—हम जैन मुनि हैं, भिक्षा लेने जा रहे हैं। कुमार ने अपने घर चलने की प्रार्थना की, प्रार्थना ही नहीं अपितु गौतम स्वामी की अंगुली पकड़कर अपने घर ले आया । राजमहल से भिक्षा लेकर गौतम स्वामी जब उद्यान में भगवान् महावीर के पास जाने लगे तब अतिमुक्तक भी साथ आया । प्रभु के दर्शन किये, उपदेश सुना और संयम लेने के लिए तैयार हो गया। माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर साधु बन गया । एक बार अतिमुक्तक बाल- मुनि शौचार्थ गये और वहाँ बहते हुए पानी को देखकर अपने श्रमणत्व को भूल गये। दोनों ओर मिट्टी से पानी पर पाल बाँधकर अपनी पात्री उसमें छोड़ दी। पात्री को जल में तैरती देखकर कुतूहल से बाँसों उछलने लगे और जोर-जोर से पुकारने लगे—मैं तैरता हूँ, मेरी पात्री (नाव) तैरती है। आवाज सुनकर इधर-उधर से स्थविर मुनि आये और उनको
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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