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________________ जैन कथा कोष २६५ का शासन.सूत्र पूरे लय पर चल रहा था। उस समय वहाँ 'धर्मघोष' नाम के महास्थविर पधारे। राजा को वैराग्य जगा। अपने पुत्र 'महाबल' कुमार को राज्य. भार सौंपकर स्वयं संयम स्वीकार कर लिया। ___ युवराज 'महाबल' अब राजा बन गया। उसके छः बालमित्र थे। वे सभी समवयस्क थे। बचपन से सब में मित्रता थी। हम सभी काम साथ-साथ करेंगे, यहाँ तक कि संयम लेंगे तो भी सब साथ ही लेंगे—इस प्रकार वचनबद्ध हो चुके थे। एक बार नगर के 'इन्द्रकुंभ' उद्यान में 'धर्मघोष' नाम के महास्थविर पधारे। राजा 'महाबल' संयम लेने को उद्यत हुआ और 'धर्मघोष' मुनि से प्रार्थना की-गुरुवर ! मैं अपने छः बालमित्रों से पूछकर उन सबके साथ ही संयम लूँगा। ___ यों कहकर अपने छः मित्रों के पास आकर सारी बात कही। वे भी दीक्षा को तैयार हो गये। 'महाबल' कुमार उन छः मित्रों के साथ 'धर्मघोष' मुनि के पास दीक्षित हो गए। तप:साधना में लीन रहने लगे। सभी मुनिगण साथ रहे। एकदा इन सातों मुनियों ने यह निर्णय लिया कि तपस्या भी हम सभी को एक जैसी ही करनी है। उपवास करते हैं तो सभी उपवास करते हैं। दो दिन का, तीन दिन का व्रत भी करते हैं। तप सभी एक जैसा ही करते हैं। यों करतेकरते 'महाबल' मुनि के मन में विचार आया कि इन सभी के बराबर तपस्या करने में मेरी क्या अधिकाई है। मुझे इनसे कुछ अधिक करनी चाहिए। यों विचार कर अन्य छ: मुनि दो दिन का व्रत खोलने के लिए आहार लाते तो 'महाबल' मुनि कहते कि ऐसे ही भावना बन गई, मैंने तीन दिन का व्रत कर लिया। यों कपटपूर्वक उनसे अधिक तप कर लेते । यों अनेक वर्ष संयम का क्रम चलता रहा। इस प्रकार माया के कारण उन्होंने स्त्री नामकर्म का उपार्जन किया। उत्कृष्टं तप तथा बीस स्थानकों के सेवन से तीर्थंकर नामकर्म का भी बन्धन किया। सातों मुनि संयम का सकुशल परिसमापन करके अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए। ___ वहाँ से वे छः मित्रों के जीव अलग-अलग राज्यों में राजकुमार के रूप में पैदा हुए तथा 'महाबल' का जीव 'मिथिला' नगरी के महाराज 'कुंभ' की पटरानी 'प्रभावती' के यहाँ पुत्री रूप में पैदा हुआ।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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