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________________ २६४ जैन कथा कोष मौके का लाभ उठाते हुए उसने कहा—महाराज ! 'मल्लि' कुमारी के समक्ष आपकी सभी रानियाँ फीकी लगती हैं। उसके पद-नख से भी तुलना नहीं कर सकतीं। राजा मल्लिकुमारी को पाने के लिए अधीर हो उठा और उसने अपना दूत वहाँ भेज दिया। इस प्रकार साकेत, चम्पा, श्रावस्ती, वाराणसी, हस्तिनापुर और कापिल्यपुर के राजाओं के दूत मिथिला पहुँचे और अपने-अपने महाराजा के लिए कुमारी मल्लि की याचना की। राजा 'कुंभ' ने उन्हें तिरस्कृत कर नगर से निकाल दिया। वे छहों दूत अपने-अपने स्वामी के पास आये और सारी घटना कह सुनाई। छहों राजाओं ने कुपित होकर मिथिला की ओर प्रस्थान कर दिया। इसके बाद मल्लिकुमारी की कुशलता से वे प्रतिबुद्ध हुए। जब मल्लिनाथ को केवलज्ञान हो गया और उन्होंने धर्मदेशना दी तो इन छहों राजाओं ने भी संयम ग्रहण कर लिया। –ज्ञाताधर्मकथा, अ.८ माता १५३. मल्लिनाथ ___सारिणी . जन्म स्थान मिथिला केवलज्ञान तिथि मार्गशीर्ष शुक्ला ११ प्रभावती चारित्र पर्याय ५४,६०० वर्ष पिता कुंभ निर्वाण तिथि फाल्गुन शुक्ला १२ जन्म तिथि मार्गशीर्ष शुक्ला ११ कुल आयु ५५,००० वर्ष कुमार अवस्था १०० वर्ष चिह्न दीक्षा तिथि पौष शुक्ला ११' जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में 'वीतशोका' नाम की एक विशाल, समृद्ध और दर्शनीय नगरी थी। उसके अधिनायक 'बल' राजा के धारिणी प्रमुख एक हजार रानियाँ थीं। धारिणी रानी के पुत्र का नाम था 'महाबल'। कुमार का कमलश्री आदि पाँच सौ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ। 'बल' राजा कलश १. त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र और जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, भाग ६ में ये दोनों तिथियाँ मार्गशीर्ष शुक्ला ग्यारह है लेकिन ज्ञातासूत्र में पौष शुक्ला ग्यारह है।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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