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________________ जैन कथा कोष ૬ बेचारी अंजना पर क्या बीतती होगी, जिस निरपराध का बाहर वर्षों से मैंने बिल्कुल बहिष्कार कर रखा है? मेरा मुँह भी उसने पूर्णत: नहीं देखा है । अत: मुझे उससे मिलना चाहिए। पवनंजय ने अपने मित्र प्रहसित से सारी मनोव्यथा कही । मित्र ने भी उसकी पवित्रता में कोई सन्देह नहीं करने को कहा तथा यह भी कहा – ' इतना निरादर सहकर भी आपके प्रति कल्याण-कामना लिये शकुन देने आयी, इससे अधिक और उसके सतीत्व का क्या प्रमाण होगा?' मित्र को साथ लेकर पवनंजय छावनी से विद्या- बल द्वारा आकाशमार्ग से चल पड़े और अंजना के महलों में एक प्रहर में ही पहुँच गये। अंजना उन्हें देखते ही हर्षित हो गई। वह खुशी के आँसू बहाने लगी । पवनंजय ने अतीत को भूल जाने के लिए कहा। शेष रात्रि महलो में रहकर पवनंजय प्रातःकाल छावनी में जाते समय अपने हाथ की अंगूठी निशानी के रूप में देकर चले गये । सात महीने युद्ध में लग गये, पवनंजय वापस नहीं आये। पीछे से अंजना को गर्भवती देखकर उसकी सास केतुमती आग-बबूला हो उठी। उसे व्यभिचारिणी करार दे दिया गया। अंजना ने बहुत विनम्रता से सारी बात कही, पर माने कौन? प्रह्लाद ने देश- निष्कासन का आदेश दे डाला । पवनंजय जब तक नहीं आ जाये, तब तक अंजना ने वहीं रखने को कहा, परन्तु उसकी इस प्रार्थना को भी स्वीकार नहीं किया गया। काले कपड़े पहनाकर काले रथ में बिठलाकर केतुमती ने अंजना को उसके पीहर महेन्द्रपुर की ओर वन में छोड़ आने के लिए सारथी को आदेश दे दिया । सारथी भी उसे जंगल में छोड़ आया । अंजना महेन्द्रपुर की ओर चली । रास्ते में शुभ संयोग से एक महामुनि के दर्शन हुए। मुनि ने धैर्य रखने की प्रेरणा दी। अंजना अपनी सखी-तुल्य दासी 'वसंततिलका' को लेकर पीहर की ओर बढ़ी। कष्ट के समय पीहर में आश्रय पाने में अंजना संकोच कर रही थी, पर वसंततिलका के आग्रह से वहाँ पहुँची । काले वस्त्रों में अंजना को देखकर माता-पिता, भाई- भौजाइयाँ, यहाँ तक कि नगर-निवासी भी उसे रखना तो दूर, पानी पिलाने को भी तैयार नहीं हुए। दिन कहकर थोड़े ही बदलते हैं। सभी ने इस निर्णय पर अपने आप को अटल रखा कि ऐसी व्यभिचारिणी से हमारा क्या सम्बन्ध है । इसका तो मुँह भी नहीं देखना चाहिए। उसे वहाँ भी आश्रय नहीं मिला । अंजना अपने कृतकर्मों को दोष देती हुई अपनी सखी के साथ जंगल में जा पहुँची। वहाँ एक गुफा का आश्रय लेकर धर्मध्यान में अपने दिन बिताने
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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