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________________ २१२ जैन कथा कोष ही उच्छृखल, अविनीत और अप्रियवादी था। ___अल्प दिनों की बीमारी के बाद मालुगा की मृत्यु हो जाने से अम्बऋषि का मन संसार से उचाट हो गया। वह जिनधर्म का विद्वान् और साधु-श्रमणों का भक्त तो था ही। उसने जिन-दीक्षा ले ली। उसके साथ निम्बक भी दीक्षित हो गया। अपने उच्छृखल स्वभाव के कारण निम्बक अन्य सभी श्रमणों को अप्रिय लगने लगा। साधुओं ने और यहाँ तक आचार्यश्री ने भी उसे बहुत समझाया, पर वह न माना | आखिर आचार्य ने उसे संघ से निकाल दिया। पुत्र-स्नेहवश अम्बऋषि भी उसके साथ निकल गया। ___अम्बऋषि अपने पुत्र निम्बक के साथ अन्य श्रमण-समूह में गया, लेकिन निम्बक की उच्छृखलता और अविनीतता के कारण वहाँ से भी निकाल दिया गया। इस तरह वे दोनों पिता-पुत्र कई श्रमण-समूहों में गये, लेकिन उन्हें सभी जगह से निकाल दिया गया। अब तो अम्बऋषि का दिल टूट गया। निम्बक को लेकर वे एक उद्यान में आये और एक वृक्ष के नीचे बैठकर रोने लगे। पिता को रोते देख निम्बक को हार्दिक पश्चात्ताप हुआ। उसने चरणों में गिरकर क्षमा माँगी और आगे से अपने व्यवहार को सुधारने का वचन दिया। पिता उसे लेकर पुनः आचार्य के पास गया और विनयपूर्वक संघ में स्थान देने की प्रार्थना की। विश्वास दिलाया—अब निम्बक सामाचारी में ठीक चलेगा। आचार्य ने कृपा करके उसे दो दिन के लिए स्थान दे दिया। लेकिन अब निम्बक का व्यवहार बदल चुका था। वह विनीत बन चुका था। उसने एक ही दिन में सभी श्रमणों को प्रसन्न कर लिया। आचार्य ने पुनः उसे संघ में सम्मिलित कर लिया। अविनयी को कहीं भी आश्रय नहीं मिलता, विनयी को ही आश्रय प्राप्त होता है। -धर्मोपदेशमाला, विवरण, कथा १४२ १२१. निषधकुमार 'निषधकुमार' 'द्वारिका' के महाराज श्रीकृष्ण' के ज्येष्ठ भ्राता 'बलभद्र' का पुत्र था। उसकी माता का नाम था 'रेवती'। निषधकुमार युवावस्था में बहत्तर
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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