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________________ २०० जैन कथा कोष तपस्वी ने उसे भी अपनी क्रोधभरी दृष्टि से भस्म कर दिया। - हंस मरकर अंजनगिरि के वन में सिंह बना। धर्मरुचि तपस्वी किसी सार्थ के साथ अंजनगिरि के वन में से गुजर रहे थे। सिंह की उन पर दृष्टि पड़ी तो उसका पूर्वभव का वैर जागृत हो गया। उसने उन पर झपट्टा मारने का प्रयास किया, लेकिन तपस्वी ने उसे भस्म कर दिया। सिंह मरकर वाराणसी नगरी में एक ब्राह्मण का पुत्र बना। धर्मरुचि तपस्वी भी भ्रमण करते हुए वाराणसी आये। तपस्वी को देखकर ब्राह्मण-पुत्र क्रोध में भर गया । वह अन्य बालकों के साथ मिलकर तपस्वी को ढेलों से मारने गया। बहुत मना करने पर भी न माना तब तपस्वी धर्मरुचि ने उसे तेजोलब्धि से भस्म कर दिया। ब्राह्मण-पुत्र ने वाराणसी के राजा के यहाँ जन्म लिया। जब वह युवा हो गया तो राजा ने उसे राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली। वह राजा बन गया। एक बार उसने एक नौका गंगा में तैरती देखी तो मन में ऊहापोह करने लगा। उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसके स्मृति-पटल में उसके छहों पूर्वभव तैर गये। जन्मान्तरीय वैर के स्मरण से उसके हृदय में कंपकंपी मच गयी। इस वैर को समाप्त करने के लिए उसने तपस्वी को खोजने का संकल्प किया और इसके लिए निम्न गाथा बनाई___ गंगाए नाविओं नंदो सभाए घर कोइलो। हंसो मयंगतीराए सीहो अंजणपव्वए॥ वाराणसीओ वडुओ राया तत्थेव आगओ.... और इसे प्रचारित कराने के साथ उद्घोषणा कराई कि जो इस गाथा के अन्तिम चरण की पूर्ति कर देगा, उसे आधा राज्य पुरस्कार में दिया जायेगा। लोग इन तीनों पदों को गाने लगे। एक बार धर्मरुचि तपस्वी वाराणसी के उद्यान में आये। एक ग्वाला इन पदों को गा रहा था। तपस्वी को अपनी जीवन की विगत घटनाएं स्मृति-पटल पर तैर गईं। उन्होंने चौथा पद बनाकर इस गाथा की पूर्ति की एतेसिं घायओ जो उ सो एत्थेव समागओ। ___ यह पद-पूर्ति ग्वाले ने राजा को सुनाई। राजा तपस्वी धर्मरुचि के पास आया, उनकी वन्दना की और पूर्वभवों के वैर की क्षमायाचना कर उनको प्रसन्न किया। तपस्वी धर्मरुचि का अन्त:करण भी निःशल्य हो गया और राजा ने
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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