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१८४ जैन कथा कोष गई। वह उसे एकटक देखने लगी। दामनक के हाथ में पत्र था। नींद में हाथ ढीला पड़ा तो पत्र जमीन पर गिर गया। विषा ने कुतूहलवश उसे उठा लिया। देखा तो पत्र उसी के पिता के हाथ का लिखा था। उसने पढ़ा । उस पत्र में उसके भाई के लिए लिखा था—स्वागत-सत्कार और भोजन के बाद तुरन्त इस युवक को विष दे देना। इस कार्य में भूल या असावधानी न हो।
विषा तो दामनक पर मोहित हो ही चुकी थी। वह उसे कैसे मर जाने देती ! उसने पास ही पड़ा एक तिनका उठाया और अपनी आँख के काजल से 'विष' के स्थान पर 'विषा' कर दिया। इसके बाद पत्र को वहीं रखकर घर चली आयी। ____ दामनक ने सेठ सागरंदत्त के पुत्र को वह पत्र दिया। पत्र पढ़कर सेठ के पुत्र ने दामनक को ऊपर से नीचे तक देखा, मन-ही-मन पिता के निर्णय की सराहना की और सगे-सम्बन्धियों को प्रीतिभोज देकर विषा का विवाह सबकी साक्षी में दामनक के साथ कर दिया।
सेठ सागरदत्त जब घर लौटकर आया तो यह सब देखकर सिर धुनकर रह गया। लेकिन इतने पर भी उसने अपनी कुचाल न छोड़ी। अबकी बार धन का लालच देकर अपने विश्वस्त सेवकों को दामनक की हत्या करने के लिए तैयार कर लिया। उसने यह नहीं सोचा कि दामनक के मरते ही उसी की पुत्री विधवा हो जायेगी। सेठ के सेवक अब अवसर की तलाश में रहने लगे।
एक दिन दामनक के मित्र के यहाँ कोई नाटक था। उसे देखने दामनक और सागरदत्त का लड़का गया। दामनक का मन नाटक में नहीं लगा। वह उठकर चला आया। तब तक आधी रात हो चुकी थी। घर के दरवाजे बन्द हो चुके थे। दामनक ने आवाज देकर किसी को जगाना उचित नहीं समझा और बाहर पड़ी पुरानी खाट पर लेट गया। लेकिन खाट में खटमल अधिक थे। वे उसे काटने लगे। वह घड़ी-भर भी न सो पाया। उसने सोचा—इससे तो यही अच्छा है कि मैं नाटक देखने में ही रात बिताऊँ और मित्र के यहाँ ही सो जाऊँ। यह सोचकर वह चल दिया और मित्र के यहाँ जा पहुँचा।
इधर नाटक समाप्त करके सेठ सागरदत्त का पुत्र आया और उसी खाट पर सो गया। भ्रमवश सेवकों ने उसे दामनक समझा और तलवार के प्रहार से मौत के घाट उतार दिया।