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________________ १६८ जैन कथा कोष . ___ सोनैया की वर्षा देखकर लोग दौड़े। पूर्ण भी चौंका। अब उसे यह कहने में संकोच होने लगा कि मैंने भगवान् को बाकुलों की भिक्षा दी है। अहं में अकड़कर लोगों से कहने लगा—'मैंने प्रभु को खीर का दान दिया है।' पर यह रहस्य भी अधिक दिनों तक रहस्य बना नहीं रह सका। विमल नाम के केवली मुनि वहाँ आये। उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में जीर्ण को उत्कृष्ट दानदाता बताया। लोगों ने विस्मय के साथ कहा-दान तो पूर्ण ने दिया.....।' तब केवली मुनि ने सारी बात बताते हुए कहा—यदि थोड़ी देर और जीर्ण सेठ दुन्दुभि का नाद नहीं सुनता तो उसे केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाती, वह भावना में इतना तल्लीन हो गया था। जीर्ण सेठ मात्र दान की भावना के बल पर बारहवें स्वर्ग में गया। वहाँ से महाविदेह में उत्पन्न होकर मोक्ष में जाएगा। -धर्मरत्नप्रकरण -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र ६३. जुट्ठल श्रावक 'जुट्ठल' श्रावक भगवान् ‘नेमिनाथ' के समय में 'भद्दिलपुर' नगर में रहने वाला एक धनाढ्य गाथापति था। उसके यहाँ विपुल धन-धान्य था। सोलह कोटि सोनैये व्यापार में, सोलह कोटि सोनैये कृषि में तथा सोलह कोटि सोनैये जमीन में सुरक्षित थे। गायों के सोलह गोकुल थे तथा बत्तीस स्त्रियाँ थीं। __ प्रभु नेमिनाथ के उपदेश से उसके मन में वैराग्य जगा। श्रावकधर्म स्वीकार किया। खान-पान का बहुत अधिक संयम किया। चावल, चने की दाल तथा पानी—इन तीन द्रव्यों के उपरान्त उसने सभी खाद्य-पदार्थों का परित्याग कर दिया। आभूषणों में एक मुद्रिका के सिवा सभी आभूषणों का त्याग कर दिया। पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार करके बेले-बेले आदि की तपश्चर्या द्वारा अपनी साधना में लीन रहने लगा। उसकी स्त्रियों ने इसकी साधना, कायिक कृशता और भोगपराङ्मुखता देखकर अपनी ओर आकर्षित करने के अनेक प्रयत्न किये। भोग-प्रार्थना भी की, पर वह अपनी साधना में उत्तरोत्तर बढ़ता रहा। अपने नियमों में दृढ़ रहा। स्त्री-संसर्ग न हो इसलिए उसने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं स्वीकार कर
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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