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________________ जैन कथा कोष १३७ ७६. चन्दन-मलयागिरि कुसुमपुरनरेश चन्दनसिंह की रानी का नाम मलयागिरि था । उसके दो पुत्र थेसायर तथा नीर। सायर अभी आठ वर्ष का था और नीर की आयु थी पाँच वर्ष । बड़े सुख से दिन व्यतीत हो रहे थे कि एक रात्रि को उसकी कुलदेवी ने कहा- 'राजन् ! तुम्हारे बुरे दिन आ रहे हैं । तुम्हारे कारण प्रजा भी दु:खी होगी । इसलिए अच्छा यही रहेगा कि तुम राजपाट छोड़कर सपरिवार कहीं चले जाओ। ' राजा ने कुलदेवी की आज्ञा का पालन किया और राज्य छोड़कर साधारण वेश में सपरिवार चल दिया। चलते-चलते ये लोग कनकपुरी पहुँचे। वहाँ एक सेठ के यहाँ चारों को काम मिल गया । राजा चन्दनसिंह सेठ के निजी काम करता । रानी मलया जो सेठानी की निजी दासी थी, उसके सभी काम करती और दोपहर को थोड़ा अवकाश का समय मिलता तो जंगल से लकड़ियाँ बीन लाती 'और उन्हें बाजार में बेच आती । सायर-नीर दिन-भर सेठ की गाएं चराते और शाम को लौटते । इन चारों के लिए सेठ ने एक कोठरी दे दी थी। उसमें ये भोजन बनाते और वहीं सो रहते। इस प्रकार ये अपने दुर्दिन व्यतीत कर रहे थे । एक बार कनकपुरी में लक्खी बनजारा आया। उसके साथ बहुत बड़ा सार्थ था। नगर से बाहर विशाल मैदान में उसने अपने शिविर लगवाये और व्यापार करने लगा। एक दिन मलया अपनी लकड़ियाँ बेचने उधर ही निकल गयी । बनजारे ने उसे देखा तो उस पर रीझ गया । दुगुना मुल्य देकर लकड़ियाँ खरीदने लगा । मलया भी प्रतिदिन उसी को लकड़ियाँ बेचने चली जाती। उसे नगर में घूमना भी नहीं पड़ता और दुगुना मूल्य भी मिल जाता । लेकिन मलया बनजारे के मनोभावों से अनभिज्ञ थी । यदि उसे बनजारे की नीयत पर थोड़ा भी सन्देह होत । तो उसके शिविर में कभी नहीं जाती । अन्तिम दिन जब बनजारे के शिविर उखड़ चुके थे, तब मलया लकड़ियाँ लेकर पहुँची। उखड़े शिविर देखकर वह लौटने लगी तो बनजारे ने सहानुभूति दिखाते हुए कहा—' वापस क्यों लौटती हो? लकड़ियाँ गाड़ी में डाल दो, रास्ते में काम आ जायेंगी । ' लकड़ियाँ डालने जैसे ही मलया गाड़ी के पास पहुँची कि बनजारे के संकेत से उसके सेवकों ने मलया को बाँधकर गाड़ी में डाल दिया । मलया
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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