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________________ १३६ . जैन कथा कोष आँखों में आँसू, (६) दो पहर दिन बीतने के बाद, (१०-११) एक पैर दहलीज के अन्दर, एक बाहर, (१२) छाज में, (१३) बासी उड़द के बाकले लिये खड़ी हो तो उसके हाथ से भिक्षा लेकर पारणा करना, अन्यथा नहीं। इस अभिग्रह को लिये पाँच मास पच्चीस दिन हो गये थे, पर कहीं योग न मिला। तब छ: महीने में केवल पाँच दिन बाकी थे। फिर भी प्रतिदिन की भाँति भिक्षा की गवेषणा करते-करते भगवान वहाँ आये। अपने ज्ञान-बल से देखा तो बारह बातें मिल गईं, पर आँखों में आँसू नहीं थे। भगवान् वापस लौटने को ही थे कि तभी चन्दनबाला अपनी दु:ख भरी वाणी से रोती हुई बोल पड़ी—“भगवन ! मेरे जैसे दु:खी व्यक्ति को कौन पूछता है। राज्य गया, पिता का वियोग हुआ, माता वन में मर गई। मुझे बाजार में बेचा गया, सेठानी 'मूला' ने मेरी यह दशा की—इन सबका मुझे कोई अफसोस नहीं है, पर आप भी आज यों ही छोड़कर जा रहे हैं, तब मेरा कौन है?" भगवान् महावीर आँखों में आँसू देखकर वापस मुड़े। चन्दनबाला के हाथ से भिक्षा ली। बस, फिर क्या था? सारी स्थिति ही पलट गई। आकाश में 'अहोदानं, अहोदानं' की दुन्दुभियां बज उठीं। चन्दनबाला के हथकड़ियों और बेड़ियों के स्थान पर मणि-माणिक-जड़ित गहने हो गये। केश वापस आ गये। उसका रूप-लावण्य पहले से सौगुना निखर उठा। साढ़े बारह करोड़ सोनैयों की वर्षा हुई, जिसे लेने सेठानी मूला पीहर से दौड़ी-दौड़ी आयी पर देवताओं ने टोकते हुए कहा-'नहीं, ये सब इसकी दीक्षा में काम आयेंगे।' चन्दनबाला के दुर्दिनों का अन्त हुआ। भगवान् महावीर को जब केवलज्ञान की प्राप्ति हुई, तब वह उनके पास जाकर दीक्षित हुई। केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में पहुँची। धन्य है महासती चन्दनबाला, जिसने इतने संकटों को सहकर भी अपना धीरज नहीं खोया। —आवश्यकनियुक्ति, गाथा ४२०
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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