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________________ १३४ जैन कथा कोष ७५. चन्दनंबाला भगवान् महावीर के साध्वी संघ में छत्तीस हजार साध्वियाँ थीं। उन सबकी अग्रणी का नाम था चन्दनबाला । महासती चन्दनबाला का साध्वीपूर्व-जीवन बहुत ही रोमांचक है, जो यों है- ... चम्पानगरी के महाराज दधिवाहन की महारानी का नाम धारिणी और पुत्री का नाम चन्दनबाला था । चन्दनबाला अपने माता-पिता को बेहद प्यारी थी। अकस्मात् महाराज दधिवाहन पर कौशाम्बी के महाराज शतानीक ने आक्रमण कर दिया। दधिवाहन ने व्यर्थ का रक्त बहाना उचित नहीं समझा और शतानीक से युद्ध किये बिना ही स्वयं वन की ओर चले गये। __ शतानीक की सेना ने बे-रोक-टोक नगर को लूटना शुरू किया। लूटखसोट में एक सैनिक धारिणी और चन्दनबाला को उठाकर ले गया। उस नरपिशाच ने ज्यों ही धारिणी का शील लूटना चाहा, त्योंही धारिणी ने अपनी जीभ खींचकर शील-रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग कर दिया। उसे मरा देखकर चन्दनबाला का दु:खी होना स्वाभाविक था। इधर उस सैनिक की भावना ने भी मोड़ लिया। चन्दनबाला को अपनी पुत्री मानता हुआ घर ले आया। घर पर सैनिक की पत्नी ने जब देखा कि चम्पानगरी की लूट में उसका पति धन-माल कुछ नहीं लाकर इस कन्या को लाया है तब उसे आशंका हुई कि कुछ दिन बाद यह इसे अपनी पत्नी बना लेगा। इसी आशंका से उसने अपने पति को कड़े शब्दों में कहा—'इसे जल्दी-सेजल्दी अभी बाजार में बेचकर आओ और उससे जो कुछ प्राप्त हो, वह मुझे दो।' सैनिक घबराया हुआ कौशाम्बी के बाजार में गया और उसे सौ मुहरों में एक सेठ को बेच दिया। वहाँ की वेश्या को जब पता लगा तब उसने रूपलावण्य को देखकर मुंहमांगी कीमत में खरीद लिया। ___ चन्दनबाला वेश्या के साथ जा रही थी। जब उसे यह ज्ञात हुआ कि वहाँ मेरा शील सुरक्षित नहीं है, तब उसने वेश्या के सामने अपनी स्थिति साफ-साफ रख दी। पर भला वेश्या ऐसे कब मानने वाली थी। वेश्या ने उसे एक भद्र प्रकृति के जैन श्रावक सेठ धनावा को बेच दिया। अब वह सेठ के यहाँ छोटेसे-छोटा काम भी बहुत अपनत्व से करती थी।
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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