________________
जैन कथा कोष १३१
राजा को अभय की यह घोषणा बचकानी-सी लगी। अपने पास में रख रहा है। यहाँ रहते कई बार उसने राजा और उसकी प्रजा को मौत से बचाया । अन्त में एक बहुरूपिये (जो दिखने में चण्डप्रद्योत जैसा लगता था) की ओट में जूते मारता हुआ राजगृही लेकर आया। महाराज श्रेणिक को सौंपा। अभयकुमार ने यों अपना बदला लिया ।
अधिक क्या, अपनी कामुक वृत्ति से 'मम दासीपति' भी कहलाया । वह घटना यों है—
सिन्धु सौवीर देश के 'वीतभय पाटन' के राजा 'उदायन' की राजा 'चेटक ' की पुत्री ‘प्रभावती' महारानी थी और एक कुब्जा दासी थी। एक समय उस दासी की परिचर्या पर प्रसन्न होकर गान्धार देश के एक श्रावक ने उसको दो गुटिकाएं दीं। एक गुटका खाने से उसका रूप स्वर्ण जैसा सुन्दर हो गया । उसका नाम हो गया 'स्वर्ण गुटिका'। दूसरी गोली के प्रभाव से वह अपने इच्छित पुरुष को जहाँ-तहाँ से बुला सकती थी । उसने किया भी वैसा ही ।
उज्जयिनी के स्वामी चण्डप्रद्योत के स्वभाव की कहानी से वह दासी परिचित थी ही। उसने उसे याद किया और वह कामान्ध अपने अनलगिरि हाथी पर चढ़कर आ गया। दासी को ले गया। जब 'उदायन' को इस घटना का पता लगा, तब प्रबल दल से सज्जित होकर लड़ने आया । लड़ाई में उसको पकड़कर ललाट पर तप्त शलाका से डाम लगाया — ' मम दासीपति' – अर्थात् मेरी दासी का पति दास है। बाद में संवत्सरी प्रतिक्रमण पर क्षमायाचना करके छोड़ दिया। जब वह उज्जयिनी चला गया, तो उस दाग पर सोने का पट्टा लगा लिया ।
इतना ही नहीं, प्रत्येकबुद्ध द्विमुख से भी मुकुट के लिए जाकर अड़ा । मुकुट में विशेषता यह थी कि उसको धारण करने वाले व्यक्ति के दो मुँह दिखा करते थे। वहाँ पर भी बुरी तरह से परास्त हुआ ।
।
यों प्रद्योत का जीवन विविध आयामों में बीता । अपनी वृद्धावस्था में भी महाराज श्रेणिक के पौत्र और महाराज कूणिक के आत्मज उदायी से बहुत बुरी तरह से मुँह की खायी। कामी होने से कहीं भी सफल न हो सका।
- आवश्यक मलयगिरी
१. विस्तृत वर्णन 'सम्राट श्रेणिक' प्रकरण में देखें ।