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________________ २० जैन कथा कोष साधना की विभिन्न श्रेणियाँ होती हैं तो साधकों की विभिन्न रुचियाँ । कोई सामुदायिक साधना में रस लेता है तो कोई व्यक्तिगत साधना में। द्वन्द्व वहाँ नहीं होता है। द्वन्द्व वहाँ होता है, जहाँ एक-दूसरे को हीन मानकर अपने आपको श्रेष्ठ मानने का भाव उभरता है। ___ खंधक मुनि गुरु से स्वतन्त्र विहार का आदेश प्राप्त कर स्वतन्त्र विचरने लग। जब खंधक मुनि के पिता महाराज 'कनककेतु' को मुनि के पृथक् विहार का पता लगा तो पितृ-हृदयवश अपने पाँच सौ सुभटों को मुनि के अंगरक्षक के रूप में मुनि के साथ भेज दिया। 'खंधक' मुनि को इनकी कोई अपेक्षा नहीं थी। फिर भी वे पाँच सौ सुभट छाया की तरह मुनि के साथ-साथ रहते थे। कोई कितनी ही सजगता क्यों न रखे, परन्तु भवितव्यता के दरवाजे तो फिर भी खुले ही रहते हैं। ___ खंधक मुनि विहार करते-करते अपनी बहन की राजधानी कुन्ती नगर में आये। मास के तप का मुनि के पारणा था। सुभटों ने सोचा-यहाँ तो बहन का ही राज्य है, यहाँ मुनि को क्या भय होना है। इस प्रकार विचार कर नगर में इधर-उधर घूमने चले गए। मुनि भिक्षा के लिए जाते हुए राजमहल के नीचे से गुजरे । ऊपर गवाक्ष में बैठे राजा-रानी अर्थात् पुरुषसिंह और सुनन्दा चौपड़ खेल रहे थे। ____ मुनि को देखकर रानी सुनन्दा को अपने भाई की स्मृति हो गायी। खेल से दिल उचट गया। आँखों में आँसू आ गये। राजा ने सोचा, रानी मुनि को देखकर अन्यमनस्क क्यों हुई। उसे रानी के चरित्र पर सन्देह हुआ। खेल समाप्त कर सभा में आया । आव देखा न ताव, बिना विचारे ही जल्लाद को बुलाकर मुनि की चमड़ी उतारने का आदेश दे दिया। जल्लाद मुनि को पकड़कर श्मशान में ले गये। मुनि की नख से शिख तक सारी चमड़ी उतार दी। मुनिवर को भयंकर वेदना थी। फिर भी वे समाधिस्थ रहे । अद्भुत तितिक्षा से केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में पहुंचे। ____ मुनि के छीले जाने के बाद यह दुश्चर्चा नगर में हवा की भाँति फैल गई। जिसने भी सुना, उसने राजा की भर्त्सना की। सुभटों को जब पता लगा तब वे भी अपनी असावधानी पर बिसूर-बिसूरकर रोने लगे। भेद खुला तो अपने साले की इस भाँति निमर्म हत्या से राजा पुरुषसिंह भी शोकाकुल हो उठा। रानी
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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