SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन कथा कोष १०५ ५६. केशरी (सामायिक) कामपुर का शासक राजा विजयचन्द्र और वहाँ का प्रसिद्ध व्यापारी संघदत्त था। संघदत्त का पुत्र था केशरी। बचप में केशरी सामान्य बालकों जैसा ही था। इसकी रुचि धर्म की ओर भी थी। गुरुदेव से उसने नवकार मन्त्र सीखा और नित्य एक सामायिक करने का नियम ले लिया। वह सविधि सामायिक करता। पहले भूमि का प्रमार्जन करता, फिर शुद्ध आसन लेता, घर के कपड़े उतारकर शुद्ध वस्त्र और उत्तरासन धारण कर, मुखवस्त्रिका बाँधकर, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके नमस्कार सूत्र बोलता, सम्यक्त्व सूत्र बोलता, तिक्खुतो सूत्र से गुरुदेव को वंदन करता, आलोचना सूत्र से आलोचना करता, कायोत्सर्ग सूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करता और फिर कायोत्सर्ग का दोषापहार करता। लोगस्स सूत्र से चौबीस तीर्थंकरों की वन्दना के पश्चात् सामायिक की प्रतिज्ञा लेकर प्रणिपात सूत्र से अरिहंत-सिद्ध भगवन्तों की स्तुति करता। उसके बाद नवकार मन्त्र की माला जपता। यों ४८ मिनट तक सामायिक यानि समभावों में लीन रहकर सामायिक पारता और तब गुरुदेव को वन्दन कर घर आता। उसकी इस प्रवृत्ति से पिता संघदत्त बहुत प्रसन्न थे। उसे अपना पुत्र होनहार दिखाई देता था। उसे विश्वास था कि उसका पुत्र उसके कुल की कीर्ति को फैलायेगा। ___लेकिन पिता की यह प्रसन्नता स्थायी न रही। ज्यों-ज्यों केशरी बड़ा हुआ, उसमें कुसंगति के कारण दुर्गुण आने लगे। पिता ने उसे बहुत समझाया, गुरुदेव ने भी प्रेरणा दी, पर उसे किसी की बात न लगी। वह पक्का चोर बन गया। ___ चोर तो वह नामी हो गया, ऐसा कि एक दिन भी चोरी किये बिना उसे चैन नहीं पड़ता था। लेकिन उसमें एक अच्छाई यह बाकी रही कि उसने सामायिक नहीं छोड़ी। हाँ, इतना अवश्य हुआ कि लोगों की भर्त्सना और हेय दृष्टि से बचने के लिए वह किसी अन्य शांत-एकांत-निर्जन स्थान पर सामायिक का नित्य नियम पूरा कर लेता, पर करता अवश्य था। उसकी यह सामायिक गुप्त थी। इसके बारे में कोई नहीं जानता था। पिता संघदत्त भी यही समझता था कि इसने सामायिक का नियम भंग कर दिया है। चोर से सामायिक की आशा भी कैसे की जा सकती है ! __जब संघदत्त ने समझ लिया कि उसका पुत्र केशरी उसके हाथ से निकल चुका है, तब उसने राजा विजयचन्द्र को सम्पूर्ण बात बताकर केशरी को मार्ग
SR No.023270
Book TitleJain Katha Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChatramalla Muni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh prakashan
Publication Year2010
Total Pages414
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy