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कैसे होते हैं, नरकों के दुखों का वर्णन और जन्मभूमियों का वर्णन इत्यादि विषय इस अधिकार में समाहित हैं।
___ अन्तिम गाथाओं में बताया है कि जो जीव मद्य-मांस का सेवन करते हैं, शिकार करते हैं, असत्य वचन बोलते हैं, चोरी करते हैं, रात-दिन विषयसेवन करते हैं और दूसरों को ठगते हैं, वे तीव्र दुख को उत्पन्न करनेवाले नरकों में जाते हैं। उन्हें वहाँ अनेक भयानक कष्ट सहन करने पड़ते हैं। 3. भवनवासी लोक अधिकार (गाथा 254) रत्नप्रभा पृथिवी के एक लाख योजन प्रमाण मोटाईवाले क्षेत्रों में उत्कृष्ट रत्नों से शोभायमान भवनवासी देवों के भवन हैं।
जो देव इन भवनों में रहते हैं, उन्हें भवनवासी देव कहते हैं । ये दस प्रकार के होते हैं-असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, स्तनितकुमार, विद्युत्कुमार, दिक्कुमार, अग्निकुमार और वायुकुमार।
इन देवों के मुकुटों में क्रमश: चूड़ामणि, सर्प, गरुड़, हाथी, मगर, स्वस्तिक, वज्र, सिंह, कलश और तुरंग-ये चिह्न होते हैं।
इस अधिकार में भवनवासियों के निवासक्षेत्र, देवों के भेद, चिह्न, भवनों की संख्या, इन्द्रों का प्रमाण, इन्द्रों के नाम, भवनों का विस्तार, भवनों में वेदी, कूट, जिनमन्दिर-प्रासाद, इन्द्रों की विभूति, देवों की संख्या, उनकी आयु और शरीर का प्रमाण, अवधिज्ञान के क्षेत्र का प्रमाण और गुणस्थान आदि का वर्णन है। एक समय में उत्पन्न होनेवालों और मरनेवालों का प्रमाण, उनका आगमन एवं भवनवासी देवों की आयु के बन्ध योग्य जो भाव हैं, उन भावों के भेद और सम्यक्त्व ग्रहण करने के कारणों का वर्णन है।
अन्त में कहा है कि जो भव्य जीव विशुद्ध परिणामों के द्वारा देवायु प्राप्त करते हैं परन्तु क्रोधादि कषायों के कारण मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त नहीं कर पाते हैं, वे जीव भवनवासियों में उत्पन्न होते हैं।
इस प्रकार इस अधिकार में विस्तार से सम्पूर्ण भवनवासी देवों का वर्णन है।
अन्त में सुमतिनाथ भगवान को नमस्कार किया है। 4. मनुष्यलोक अधिकार (गाथा 3600) यह अधिकार इस ग्रन्थ का सबसे बड़ा अधिकार है। इसमें 16 अन्तराधिकार हैं जिनमें मनुष्य लोक का विस्तृत वर्णन है। 90 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय