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भाव और अल्पबहुत्व।
इन आठ प्ररूपणाओं को विस्तार से इस पहले खंड में समझाया है। इसके अनन्तर नौ चूलिकाएँ (उपविभाग) भी हैं।
द्रव्य
सामान्य सत् (अस्तित्व) क्षेत्र (स्थान) काल (समय) भाव (विचार)
विशेष संख्या (गिनती) स्पर्शन (निश्चित स्थान) अन्तर (अन्तराल) अल्पबहुत्व (कम-ज्यादा)
1. सत्प्ररूपणा
इस प्ररूपणा (अध्याय) का विषय-निरूपण (वर्णन) ओघ (संक्षेप) और आदेश (विस्तार) क्रम में किया गया है। ओघ में 14 गुणस्थानों और आदेश में 14 मार्गणाओं का वर्णन किया गया है। इसमें 177 सूत्र हैं। 14 गुणस्थानों और 14 मार्गणाओं के नाम गोम्मटसार ग्रन्थ में हम लिख चुके हैं। (देखें पृष्ठ 56 और 58)
गुणस्थान : तीन लोक में, संसार में जितने भी जीव हैं, उन सब जीवों के जितने भी भाव (विचार) हैं, उन भावों को 14 भागों में बाँटा है, यही गुणस्थान कहलाता है। जीव के भावों का वर्गीकरण गुणस्थान कहलाता है।
जैसे-बच्चा एक क्लास से दूसरी क्लास में जाता है, उसी प्रकार जीव भी एक स्थान से (गुणस्थान) से दूसरे (गुणस्थान) स्थान में जाता है।
___ जीव कैसे गुणस्थान में प्रवेश करता है, कैसे आगे बढ़ता है, कौन सा जीव किस गुणस्थान में रहता है, इसका वर्णन इस खंड में वर्णित किया है।
मार्गणा : जीव के जितने भी भेद हैं, जितने भी स्थान हैं, वे मार्गणाएँ हैं। इस अध्याय में 14 मार्गणाओं (जीव के 14 स्थानों) का वर्णन है।
2. संख्या प्ररूपणा जीवस्थान खंड की दूसरी प्ररूपणा है। संख्या प्ररूपणा। इसमें 192 सूत्रों द्वारा गुणस्थान और मार्गणा क्रम से जीवों की संख्या का निर्देश किया है।
इसमें शतसहस्रकोटि (करोड़), कोडाकोडी, संख्यात, असंख्यात, अनन्त 80 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय