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मार्गणा का स्वरूप
मार्गणा का अर्थ है - खोजना। जिसमें या जिनके द्वारा जीव खोजे जाते हैं, उन्हें मार्गणा कहते हैं। परमागम में जीव जिस प्रकार देखे जाते हैं, खोजे जाते हैं वे चौदह मार्गणाएँ हैं1. गति
3. काय
5. वेद
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2. इन्द्रिय 4. योग
6. कषाय
7. ज्ञान
8. संयम
9. दर्शन
10. श्या
11. भव्यत्व
12. सम्यक्त्व
13. संज्ञी
14. आहार
इन चौदह मार्गणाओं के द्वारा जीवों को खोजा जाता है और जाना जाता है।
6. गति मार्गणा अधिकार
गति नाम कर्म के उदय से जीव की जो चेष्टा होती है, उसे गति कहते हैं अथवा जिसके निमित्त से जीव चतुर्गति में जाते हैं, उसे गति कहते हैं । गतियाँ चार हैंनरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति, देव गति ।
7. इन्द्रिय मार्गणा अधिकार
आत्मा के चिह्नविशेष को इन्द्रिय कहते हैं । वे पाँच हैं - स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र। ये इन्द्रियाँ क्रम से एक-एक बढ़ती हुई होती हैं । इसी से जीव एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पंचेन्द्रिय होते हैं। पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पति कायिक जीव एकेन्द्रिय होते हैं, उन्हें ही स्थावर कहते हैं । तिर्यंच एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक होते हैं । किन्तु नारकी मनुष्य और देव पंचेन्द्रिय ही होते हैं । पंचेन्द्रिय मनरहित और मनसहित भी होते हैं, उन्हें क्रम से असंज्ञी और संज्ञी कहते हैं । एकेन्द्रिय से चौइन्द्रिय तक सब जीव मनरहित असंज्ञी होते हैं ।
8. काय मार्गणा अधिकार
काय शरीर को कहते हैं । काय के दो भेद हैं- स्थावर और त्रस ।
58 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय