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________________ लक्ष्मण का परिचय सुनकर तथा अपनी माता सीता के परित्याग की बात जानकर दोनों वीरकुमार सेना सहित अयोध्या को घेर लेते हैं और राम-लक्ष्मण के साथ घोर युद्ध करते हैं। राम-लक्ष्मण अमोघ शस्त्रों का प्रयोग कर भी दोनों राजकुमारों से नहीं जीत पाते, जब क्षुल्लक सिद्धार्थ राम-लक्ष्मण को वीरकुमारों का परिचय देते हैं। अपने पुत्रों से मिलकर राम-लक्ष्मण बहुत ही प्रसन्न होते हैं। हनुमान और सुग्रीव आदि राजाओं के समझाने पर राम सीता को बुला लेते हैं और सीता की अग्निपरीक्षा लेते हैं। सीता पंच परमेष्ठी का ध्यान करती है, जिससे समस्त अग्नि जलरूप में परिवर्तित हो जाती है। समस्त प्रजा तथा राम सीता की निर्दोषिता से प्रभावित होकर क्षमा माँगते हैं और घर चलने की प्रार्थना करते हैं। परन्तु सीता संसार से विरक्त होकर पृथिवीमती आर्यिका से दीक्षा ग्रहण करती है। सीता बासठ वर्ष तप कर अन्त में तैंतीस दिन की सल्लेखना धारण कर अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र होती है। इधर सर्वभूषण केवली राम, लक्ष्मण और सीता के भवान्तरों का वर्णन विभीषण आदि राजाओं को बताते हैं । राम का सेनापति कृतान्तवक्र, लक्ष्मण के आठ पुत्र और हनुमान सभी दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। राम और लक्ष्मण के स्नेह-बन्धन की परख करने के लिए स्वर्ग से दो देव अयोध्या आते हैं और विक्रिया से लक्ष्मण को राम की मृत्यु का समाचार देते हैं, जिससे लक्ष्मण की मृत्यु हो जाती है। ___ इस घटना से लवण और अंकुश भी दीक्षित हो जाते हैं । लक्ष्मण के निष्प्राण शरीर को गोदी में लेकर विलाप करते हुए राम छह माह इधर-उधर भटकते हैं। सभी राम को समझाते हैं, परन्तु पूर्व जटायु का जीव देव स्वर्ग से आकर राम को समझाते हैं, तब छह माह बाद राम लक्ष्मण के शरीर का दाह संस्कार करते हैं। राम संसार से विरक्त हो अनंगलवण के पुत्र को राज्य सौंप देते हैं। राम, शत्रुघ्न और विभीषण आदि राजा दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। मुनिराज राम पाँच दिन का उपवास लेकर वन में रहते हैं, वहीं पर राजा प्रतिनन्दी और रानी प्रभवा वन में ही मुनिराज को आहारदान देते हैं। राम तपश्चर्या में लीन रहते हैं । सीता का जीव अच्युत स्वर्ग का प्रतीन्द्र जब अवधिज्ञान से यह जानता है कि ये इसी भव से मोक्ष जानेवाले हैं, तब प्रीतिवश उन्हें विचलित करने का प्रयत्न करता है। परन्तु महामुनि राम क्षपक श्रेणी प्राप्त कर केवली हो जाते हैं। 42 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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