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________________ समीचीन धर्म समुद्घात सल्लेखना सर्वसावद्ययोग सहभावी सहस्रनाम साकार परमात्मा साधक श्रावक सावद्ययोग संरक्षण संशयज्ञान संयम सम्मूर्छन जीव स्वभावपर्याय स्थावर जीव स्याद्वाद स्वाधीनदशा श्रुत श्रुतकेवली श्रुतपरम्परा श्रुतज्ञान श्रृंखला हृदयस्पर्शी : सच्चा धर्म, वीतरागी धर्म । : आत्मा के प्रदेशों का मूल शरीर को छोड़े बिना थोड़ी देर के लिए बाहर निकल जाना । : शरीर एवं कषायों को कम करना । : सभी पाप की क्रिया । : साथ में रहनेवाले । जैसे - स्वभाव, गुण । : एक हजार नाम। : अर्हन्त परमेष्ठी । : जो श्रावक व्रत ग्रहण करता है । : पाप की क्रिया । : रक्षा करना । : सन्देहयुक्त ज्ञान । : नियन्त्रण । वे जीव जो अपने आप ही वातावरण में जन्म ले लेते : हैं। जैसे - मक्खी, मच्छर । : शुद्ध पर्याय । : एक इन्द्रियवाले जीव । : जैन दर्शन का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है जो कहता है कि हमें किसी भी बात को एक अपेक्षा से समझना नहीं चाहिए । : आध्यात्मिक दृष्टि से स्वतन्त्र दशा । : शास्त्र । : समस्त शास्त्रों का ज्ञाता । : शास्त्रों की परम्परा । : शास्त्रों का ज्ञान । : क्रम, कड़ी। : हृदय को छूनेवाला या हृदय को अच्छा लगनेवाला । 000 280 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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