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परिशिष्ट
अगृहीत मिथ्यात्व अचक्षुदर्शन अधः करण - अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण
अनन्त
अनन्तदर्शन-ज्ञान
वीर्य - सुख
अणुव्रत अतिचार
अतीन्द्रिय
अतीन्द्रियज्ञान अधिकरण
अनायतन
अनासक्त
अनुप्रेक्षा
सरल - शब्दावली
: अनादिकाल से चला आ रहा विपरीत श्रद्धान। : बिना आँखों के देखना ।
: जब आत्मा शुद्ध अवस्था की ओर तेजी से बढ़ती है तब उसके भावों में जो धीरे-धीरे शुद्धि बढ़ती जाती है, उसे ही शास्त्रों की भाषा में अधः करण - अपूर्वकरणअनिवृत्तिकरण कहते हैं ।
: जिसका कोई अन्त न हो ।
: जब आत्मा चार घातिया कर्मों से रहित हो जाती है तब उसमें ये चार महान गुण प्रकट होते हैं, जिन्हें अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्तवीर्य और अनन्तसुख कहते हैं।
: हिंसादि पाँच पापों का अल्प त्याग ।
: व्रतों में दोष लगना ।
: इन्द्रियों के विषयों से रहित ।
: बिना इन्द्रियों की सहायता से होनेवाला ज्ञान ।
: आधार ।
:
अनुचित स्थान ।
: आसक्त न होना, गृह में विरागी रहना, राग-द्वेष में लिप्त न होना । जैसे- कीचड़ में रहकर कमल खिलता है ।
: बार-बार चिन्तन करना ।
सरल - शब्दावली :: 273