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आत्मा का काम जानना और देखना है। इसलिए हमें आत्मा को जानना, देखना और समझना होगा। आत्मा को समझने के लिए हमें पहले ज्ञान को समझना होगा। ज्ञान पुण्य-पाप रूप अनेक कर्मों को, उनके फल को और निर्जरा-मोक्ष को जानता है। ज्ञान कुछ करता नहीं है। अज्ञानी आत्मा को कर्म करनेवाला मानता है। जैसे-दुनिया समझती है कि समस्त पृथ्वी को ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि देवता चला रहे हैं। परन्तु यह मिथ्यात्व है। क्योंकि जीव कुछ नहीं करता, जीव का क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं है।
जैसे हम कहते है कि दीवार हरी हो गयी, पर वास्तव में दीवार तो वही है, हरा तो रंग है।
सबको लगता है कि शास्त्र ज्ञान देते हैं। आचार्य कहते हैं कि शास्त्र तो अचेतन हैं। ज्ञान तो आत्मा में से स्वयं निकलता है। ___शास्त्र में ज्ञान नहीं है, क्योंकि शास्त्र कुछ जानते नहीं हैं, इसलिए शास्त्र अलग हैं और ज्ञान अलग है।
इसी प्रकार शब्द, रूप, गन्ध, रस, स्पर्श, कर्म, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, काल और आकाश में भी ज्ञान नहीं है, क्योंकि ये सब कुछ जानते नहीं हैं, अतः ज्ञान अलग है और ये सब अलग हैं।
इस प्रकार सभी परपदार्थों से आत्मा और ज्ञान को अलग-अलग करना, यही भेदविज्ञान इस अधिकार में समझाया है।
इसलिए अपने आत्मा को आत्मा की आराधना में लगाओ। सम्यग्दर्शनज्ञान-चारित्रमय मोक्षमार्ग में लगाओ। अपने चित्त को अन्यत्र मत भटकाओ।
इस प्रकार महान ग्रन्थ समयसार में नवतत्त्वों के माध्यम से मुख्य उद्देश्य एक शुद्ध आत्मा को जानने-समझने की बात कही है। इसको जानने और समझने पर ही निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्ग प्राप्त हो सकता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को मन लगाकर इस ग्रन्थ का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए।
समयसार :: 239