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2. 'तत्त्वार्थसूत्र' जैन दर्शन का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसे हम जैन दर्शन के प्रायः सभी विषयों और ग्रन्थों का आधारभूत ग्रन्थ भी कह सकते हैं।
3. संस्कृत भाषा में यह सबसे पहला सूत्रग्रन्थ है और आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी सर्वप्रथम संस्कृत सूत्रकार हैं ।
4. इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी महत्ता यह है कि यह श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में समान रूप से मान्य और प्रिय है ।
5. अनेक महान आचार्यों ने इस पर टीकाएँ लिखी हैं। आचार्य पूज्यपाद, भट्ट अकलंक देव और आचार्य विद्यानन्द ने दार्शनिक टीकाएँ लिखकर इस ग्रन्थ का महत्त्व व्यक्त किया है।
6. 'तत्त्वार्थसूत्र' जैन धर्म का सारग्रन्थ है। इसके मात्र पाठ करने या श्रवण करने से एक उपवास का फल मिलता है ।
7. 'तत्त्वार्थसूत्र' को जैन परम्परा में वही स्थान प्राप्त है, जो हिन्दू धर्म में 'भगवद्गीता' को, इस्लाम में 'कुरान' को और ईसाई धर्म में 'बाइबिल' को प्राप्त है । यह ग्रन्थ जैन दर्शन की गीता है ।
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8. इस ग्रन्थ में करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग का सार समाहित है। 9. 'तत्त्वार्थसूत्र' के समान सर्वमान्य ग्रन्थ जैन दर्शन में अन्य कोई नहीं है । 10. इस ग्रन्थ में जिनागम के मूल तत्त्वों को बहुत ही संक्षेप में वर्णित किया है। 11. इस ग्रन्थ में सम्पूर्ण भूगोल का भी वर्णन किया गया है। तीन लोकों की भौगोलिक संरचना इस ग्रन्थ में वर्णित है।
12. इस ग्रन्थ पर आज तक लगभग हजारों संगोष्ठियाँ, सेमिनार और स्वाध्यायसभाएँ आयोजित हो चुकी हैं।
13. अनेक विश्वविद्यालयों से 'तत्त्वार्थसूत्र' ग्रन्थ पर अनेक शोधकार्य एवं लघु शोधकार्य आदि हो चुके हैं।
14. इतनी सारी विशेषताओं और महत्त्व के कारण यह ग्रन्थ अपनी अलग ही पहचान बना चुका है
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15. 'तत्त्वार्थसूत्र' ग्रन्थ पर विविध भाषाओं में लगभग एक हजार टीकाएँ लिखी गयी हैं ।
तत्त्वार्थसूत्र
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