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________________ धर्मामृत ग्रन्थ के नाम का अर्थ इस ग्रन्थ का नाम है' धर्मामृत', धर्म का अमृत । वास्तव में यह ग्रन्थ धर्म का अमृत है । इस ग्रन्थ के दो भाग हैं 1. पहला भाग—अनगार धर्मामृत 2. दूसरा भाग – सागार धर्मामृत 1. अनगार शब्द का अर्थ है, मुनि या साधु । ग्रन्थ के पहले भाग में साधु का धर्म बताया है । साधुओं के लिए धर्म रूपी अमृत का सेवन करानेवाला यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें कुल नौ अध्याय हैं। 2. अगार शब्द का अर्थ है 'घर' । जो घर में रहते हैं, परिग्रह से युक्त होते हैं उन्हें 'सागार' कहते हैं । अतः यह ग्रन्थ घर में रहनेवाले श्रावकों को धर्म का अमृत अर्थात् उपदेश देनेवाला है । सागार धर्मामृत में कुल आठ अध्याय हैं। ग्रन्थकार का परिचय धर्मामृत के रचयिता पं. आशाधरजी का समय वि.सं. 1230 के लगभग है। ये अपने समय के एक बहुश्रुत विद्वान थे । न्याय, व्याकरण, काव्य, साहित्य, धर्मशास्त्र, अध्यात्म और पुराण आदि विविध विषयों पर उन्होंने ग्रन्थ रचना की है। पं. आशाधरजी सिद्धान्त और अध्यात्म दोनों के ही विद्वान थे । विषय की तरह संस्कृत भाषा और काव्य रचना पर भी उनका असाधारण अधिकार था। संस्कृत भाषा का शब्द भण्डार भी उनके पास अपरिमित था, वे उसका प्रयोग कुशलता से करते थे । पं. आशाधरजी गृहस्थ पण्डित थे। उनके पिता का नाम सल्लक्षण, माता का नाम श्री रत्ना, पत्नी का नाम सरस्वती और पुत्र का नाम छाहड़ था । वे वघेरवाल 148 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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