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________________ दश धर्म 1. उत्तम क्षमा : क्रोध का त्याग करके क्षमा धारण करना। 2. उत्तम मार्दव : मान कषाय का त्याग करके, कोमलता ग्रहण करना। 3. उत्तम आर्जव : मायाचार का त्याग कर, सरलता ग्रहण करना। 4. उत्तम सत्य : अप्रिय, निन्दनीय कपटी वचन नहीं बोलना। 5. उत्तम शौच : शुद्धि ग्रहण करना। बाह्य शुद्धि और अंतरंग शुद्धि ये दो प्रकार की शुद्धियाँ हैं। 6. उत्तम संयम : पंचेन्द्रियों के विषयों और मन के विषय को रोकना, छहकाय जीवों की हिंसा नहीं करना। 7. उत्तम तप : आत्मा की प्राप्ति के लिए बारह प्रकार का तप करना। 8. उत्तम त्याग : क्रोध, मान, माया, लोभ कषायों का त्याग करना। 9. उत्तम आकिंचन्य : वस्तुओं में अपनत्व का त्याग करना। चौबीस प्रकार के परिग्रह का त्याग करना। 10. उत्तम ब्रह्मचर्य : आत्मा में लीन होकर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना। बारह भावना बारह भावनाओं का विस्तृत वर्णन छहढाला ग्रन्थ में है (देखें पृष्ठ 145-146)। बारह भावनाएँ वैराग्य की जननी हैं, इनके चिन्तन करने से वैराग्य की पुष्टि होती है। इनका सदैव चिन्तन करना चाहिए। बाईस परीषह बाईस परीषह को मुनिराज सदा शान्तिपूर्वक सहन करते हैं। वे आत्मस्वरूप में लीन होकर विचार करते हैं कि चारों गतियों में भ्रमण करते हुए भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी इन बाधाओं के निराकरण के लिए मैंने बहुत समय व्यतीत कर लिया है। तीन लोक का अनाज खाकर भी, समुद्र का जल पीकर भी यह क्षुधा, तृषा कम नहीं हुई है। अतः वे शान्त परिणाम भावों से परीषह सहन करते हैं1. क्षुधा (भूख) 2. तृषा (प्यास) 3. शीत (सर्दी) 136 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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