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________________ दृष्टि से किया जाता है 2. स्वास्थ्य के लिए डाइट करना, भूखा रहना और अनशन करना उपवास नहीं माना जाता है। उपवास का सही अर्थ है - मन को सभी विकारों से मुक्त करके आत्मा का ध्यान करना । 3. उपवास के दिन निद्रा और आलस्य से दूर होकर दिन भर धार्मिक कार्य करना चाहिए। ग्रन्थों का स्वाध्याय, भजन और कीर्तन आदि करना चाहिए। ज्ञान और ध्यान में लीन रहना चाहिए। (टीवी देखना, घूमना, दिन भर सोकर निकालना या ताश खेलना-ये कार्य उपवास के दिन नहीं करना चाहिए । ) । 4. एक बार का भोजन 'एकाशन' कहलाता है। चार प्रकार के आहार का त्याग 'उपवास' है। अतः प्रोषधोपवास करते समय चारों प्रकार के भोजन का त्याग करना चाहिए । बीच-बीच में जल लेना, चाय-दूध या दवाई लेना । अन्न की जगह कुछ और वस्तु या फल आदि खाना ये सब करने से उपवास नहीं माना जाता है। अतः प्रोषधोपवास करते समय इन दोषों से बचना चाहिए। उपवास के दिन निम्न कार्य भी नहीं करने चाहिए, ये प्रोषधोपवास व्रत के अतिचार हैं प्रोषधोपवास व्रत के अतिचार 1. जीव-जन्तु को देखे बिना किसी वस्तु को ग्रहण करना । 2. बिना देखे ही पूजा, स्वाध्याय के उपकरण रखना उठाना । 3. देखे - सोधे बिना ही बैठने-सोने के लिए आसन बिछा देना । 4. उपवास में अनादर भाव रखना या उत्साह रहित होना । 5. उपवास के दिन क्रिया, पाठ आदि न करना या भूल जाना । इस प्रकार इन दोषों को ठीक तरह से जानकर और समझकर ही हमें उपवास करना चाहिए। किसी को दिखाने के लिए नहीं, हमें अपनी साधना और धर्म के लिए उपवास करना चाहिए । घ. वैयावृत्य शिक्षाव्रत मुनियों की सेवा को वैयावृत्य कहते हैं । आहारादि के दान को भी वैयावृत्य कहते हैं। उत्तमपात्र को दान देने से भोगभूमि ओर देवलोक के भोग, वैभव, तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध, चक्रवर्ती पद और निर्वाणपद प्राप्त होता है । रत्नकरण्ड श्रावकाचार :: 119
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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