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प्रयोग न होना, उनको व्यर्थ ही नष्ट करना। जैसे-बिजली, पानी, अन्न और फल यह सब आवश्यकता से अधिक नष्ट हो रहे हैं। लोग अपने स्वार्थ की पूर्ति के कारण पेड़ और जंगल तक नष्ट करते जा रहे हैं। इसीलिए आज पृथ्वी बचाओ, जल बचाओ और पेड़ बचाओ आदि नारे दिए जा रहे हैं। आन्दोलन किए जा रहे हैं। क्योंकि व्यक्ति इन साधनों का दुरुपयोग कर रहे हैं।
यदि 50 प्रतिशत व्यक्ति भी अनर्थदण्ड व्रत को धारण कर लें, तो देश में पर्यावरण सन्तुलित हो सकता है। भौतिक संसाधनों का संरक्षण हो सकता है।
इस प्रकार हम भोगोपभोग के साधनों को सीमित कर सकते हैं। भोगोपभोग-परिमाण व्रत के अतिचार 1. पाँचों इन्द्रियों के विषय-भोगों से राग करना। 2. पूर्व में भोगे गए विषयों को बार-बार याद रखना। 3. वर्तमान विषयों में अधिक लालसा रखना। 4. भविष्य में विषयों को भोगने की अधिक इच्छा करना। 5. विषयों का भोग न करते हुए भी भोगों में अत्यधिक आसक्ति रखना।
इस प्रकार श्रावक को वर्तमान समय की आवश्यकता को देखते हुए और धर्म स्थापना के लिए इन तीनों गुणव्रतों का पालन अवश्य करना चाहिए।
5. शिक्षाव्रत अधिकार शिक्षाव्रत के अन्तर्गत चार व्रत लिए गये हैं-देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास और वैयावृत्य। ये चार शिक्षाव्रत श्रावक को मुनि बनने की शिक्षा देते हैं, इसलिए इन्हें शिक्षाव्रत कहते हैं। क. देशावकाशिक शिक्षाव्रत श्रावक ने पहले दिग्व्रत में जो दिशा, देश, स्थान के व्रत ग्रहण किए थे, जो देश
और काल की मर्यादा निश्चित की थी, उस मर्यादा को कम करना देशावकाशिक शिक्षाव्रत है।
निम्न कार्य करने से इस व्रत में दोष लगते हैं, जिन्हें हम देशावकाशिक व्रत के अतिचार कहते हैं।
116 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय