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________________ तथा चारों गतियों के भ्रमण आदि विषयों का वर्णन आता है। जैसे-कषायपाहुड, षट्खण्डागम, गोम्मटसार ग्रन्थ आदि। ___3. चरणानुयोग- चरणानुयोग के ग्रन्थों में मुनि और गृहस्थ के आचरण का वर्णन होता है। मुनि और गृहस्थ निर्दोष आचरण की वृद्धि और उसकी रक्षा कैसे करें, इसका वर्णन चरणानुयोग में किया जाता है। जैसे-रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पुरुषार्थसिद्धयुपाय,धर्मामृत आदि। ___4. द्रव्यानुयोग- द्रव्यानुयोग के ग्रन्थों में सातों तत्त्वों का, पाप-पुण्य के स्वरूप का वर्णन किया जाता है। जैसे-द्रव्यसंग्रह, तत्त्वार्थसूत्र, समयसार आदि। 3. सम्यक्चारित्र के अन्तर्गत अणुव्रत अधिकार परिभाषा : जब सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान प्राप्त हो जाते हैं, उसके बाद राग-द्वेष को दूर करने के लिए जो व्रत धारण किए जाते हैं उसे सम्यक्चारित्र कहते हैं। हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह ये पाँच पाप हैं, इनका पूरी तरह से त्याग करना ही सम्यग्ज्ञानी का चारित्र है। सम्यक्चारित्र के व्यवहार से दो भेद हैं। एक मुनिराज का चारित्र और दूसरा गृहस्थ का चारित्र। जिस चारित्र का पालन मुनिराज करते हैं उसे सकल चारित्र कहते हैं और जिस चारित्र का गृहस्थ पालन करते हैं उसे विकल चारित्र कहते हैं। जो गृहस्थ पापों से डरते हैं, जिनवचनों पर पूर्ण श्रद्धा रखते हैं, वे इस चारित्र को अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रत के रूप में पालन करते हैं। अणुव्रत हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह-इन पाँच स्थूल पापों का त्याग करना अणुव्रत है। पाँच अणुव्रत के पाँच-पाँच अतिचार होते हैं, जिनका अब वर्णन कर रहे हैं। अतिचार अर्थात् व्रत में दोष लगाना। अणुव्रतों के पाँच-पाँच अतिचार 1. मनुष्य या तिर्यंचों के अंगों को छेदना, उन्हें पिंजरे में डालना, कैद करना, मारना, काटना, कष्ट देना, शक्ति से अधिक भार लादना और खाने-पीने से रोकना या कम देना अहिंसाव्रत के दोष हैं। 2. किसी व्यक्ति के चारित्र के सम्बन्ध में मिथ्योपदेश देना, गुप्त बातों को प्रकट करना, किसी की चुगली करना, उसकी कमजोरी सबको बताना, . 112 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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