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________________ इसका अनुवाद हो गया है। लगभग सौ से अधिक पद्यानुवाद तो भारत की विभिन्न भाषाओं में देखे जा चुके हैं। 4. भक्तामर स्तोत्र तीर्थंकर भगवन्तों की स्तुति का एक मंगलमय प्रभावी पाठ है। इसमें तीर्थंकर आदिनाथ की स्तुति की गयी है । 5. भक्तामर स्तोत्र एक ऐसा स्तोत्र है जिसके पद-पद और शब्द - शब्द में भक्ति रस का झरना बहता है । यह भक्त की अव्यक्त भावनाओं को व्यक्त करनेवाला स्तोत्र है । 6. भक्तिस्तोत्र के साथ-साथ मन्त्रशास्त्र के रूप में भी इसका प्रभाव, प्रतिष्ठा बहुत अधिक है । प्रत्येक स्तोत्र की अंकित पदावली के वर्ण क्रम के बीजाक्षरों को, मन्त्रशास्त्र की सारणी के रूप में लिया गया है। 7. आज से लगभग 200 से भी अधिक वर्षों पूर्व लिखी हुई भक्तामर की कृतियाँ प्राप्त हुई हैं जिनमें मन्त्र, यन्त्र, कथाएँ भी दी गयी हैं। 8. वसन्ततिलका जैसे गेय छन्द में लिखा गया यह 48 पद्योंवाला स्तोत्र है । 9. लाखों श्रावक प्रतिदिन बड़े ही श्रद्धाभाव से इसका वाचन करते हैं । भक्तिभाव से 48 दिवसीय विधान भी आयोजित होता है । 10. इसके प्रत्येक पद्य में उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार का समावेश किया है। इसकी भाषा सरल एवं भाव गाम्भीर्य है । 11. भक्तामर स्तोत्र के 48 श्लोकों में 'म', 'न', 'त', 'र' यह चार अक्षर पाए जाते हैं। इनमें मन्त्र शक्ति निहित है। स्तोत्र का मुख्य विषय आचार्य मानतुंग की भक्तिरस से पूर्ण 48 पद्योंवाली रचना है भक्तामर स्तोत्र । इसकी मुख्य विषयवस्तु इस प्रकार है 1. मंगलाचरण - प्रभाणा भक्तामर-प्रणत- मौलि-मणि-प्र मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् । सम्यक् प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादावालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् ।।1।। इसमें सबसे पहले छन्द में मंगलाचरण करते हुए आदिम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की स्तुति करते हुए उन्हें प्रणाम किया गया है। आचार्य मानतुंग भगवान 98 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय
SR No.023269
Book TitlePramukh Jain Grantho Ka Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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