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एक छोटे से परकोटे के अंदर स्थित इस जिनालय में 16वें, 17वें व 18वें तीर्थंकर भगवान शान्तिनाथ, कुंथुनाथ व अरहनाथ की आकर्षक प्रतिमायें विराजमान हैं। भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा लगभग 15 फीट ऊँची है व पार्श्व भागों में स्थित भगवान कुंथुनाथ व अरहनाथ की प्रतिमायें लगभग 8 फीट ऊँची होंगी। यह जिनालय भी लगभग सं. 1000 के आसपास का है।
9.-10. इस मंदिर परिसर के पीछे लगभग 200-300 मीटर की दूरी पर दो अन्य जिनालय स्थित हैं। जिनमें भगवान शान्तिनाथ, कुंथुनाथ व अरहनाथ की प्रतिमायें विराजमान हैं। किन्तु पुरातत्व विभाग की उदासीनता व समाज की निष्क्रियता के चलते असामाजिक तत्वों ने इन भव्य व प्राचीन मूर्तियों को खंडित कर दिया है। ये जिन-प्रतिमायें लगभग 18 फीट ऊँची हैं। अगल-बगल स्थित प्रतिमायें 8-10 फीट ऊँची हैं।
11. क्षेत्र से लगभग 1/2 किमी. की दूरी पर गांव के बीच बस्ती में भी एक प्राचीन व भव्य जिनालय स्थित है। जहां मूलनायक के रूप में 8वें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु की मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह संगमरमर प्रतिमा लगभग 1.5 फीट ऊँची होगी। यद्यपि इस जिनालय में केवल एक ही वेदी है। किन्तु उस पर चौबीस तीर्थंकरों की धातु निर्मित प्रतिमायें भी विराजमान हैं। कुछ अन्य प्रतिमायें भी वेदी पर प्रतिष्ठित हैं।
मूल क्षेत्र के प्रांगण में प्रथम वेदी के समीप चार संगमरमर की (प्रत्येक लगभग 10 फीट ऊची) खड्गासन मुद्रा में पेटियों में बंद मूर्तियां रखी हुई हैं। संभवतः या तो पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के इन्तजार में रखी हुई हैं या फिर पुरातत्व विभाग की अड़गेबाजी की वजह से इनकी स्थापना नहीं हो सकी है।
मूल क्षेत्र परिसर से पहाड़ी पर स्थित जिन मंदिरों के दर्शन हेतु जाने के लिए रास्ता ऊबड़-खाबड़ है। सीढ़ियां नहीं है। समाज को सीढ़ियों का निर्माण तुरन्त कराना चाहिए व क्षेत्र की सुरक्षा व विकास पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यह क्षेत्र प्राचीन है। प्रकृति की गोद में सुरम्य घने वनों से आवृत सुंदर पर्वतों की तलहटी में यह क्षेत्र विद्यमान है।
90 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ