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________________ जिनालय स्थित है। यह जिनालय शिखर युक्त हैं। जिनालय के गर्भगृह में 4 फीट 3 इंच ऊँची भगवान पार्श्वनाथ की अतिमनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा श्याम वर्ण की है। इस प्रतिमा की विशेषता यह है कि इस मूर्ति के शिरोभाग पर स्थित फणावली अप्रत्याशित रूप से मूर्ति से पृथक है। साथ ही इस प्रतिमा की फणावली पर निम्न श्लोक भी लिखा है- ...' अन्यथासिद्धसाध्यत्व, यत्र-तत्र त्रवेण किम। नान्यथासिद्धसाध्यत्व, यत्र-तत्र त्रवेण किम।। इस वेदिका पर लगभग 1.5 फीट अवगाहना की दो पद्मासन प्रतिमायें जो अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की है; भी विराजमान है वेदिका पर अन्य प्रतिमायें भी हैं, जिनमें कुछ धातु निर्मित हैं। कहा जाता है कि प्रातः, दोपहर व सांयकाल में प्रतिमा को देखने पर अलग-अलग रूप दिखाई पड़ते हैं। यह जिनालय तीर्थ-क्षेत्र कमेटी के अधीन है। इस तीर्थ-क्षेत्र पर चैत्र कृष्ण अष्टमी से बारस तक विशाल मेला लगता है। श्रावण शुक्त सप्तमी व पौष कृष्ण एकादशी को क्रमशः भगवान का निर्माण महोत्सव व पार्श्वनाथ जयन्ती मनाई जाती है। तीर्थ-क्षेत्र पर वह कुआं स्थित है। जिसमें माली मूर्ति लेकर कई दिनों तक छिपा रहा था। कहा जाता है कि इस कुएं का जल रोग दूर करने की सामर्थ्य रखता है। कहा जाता है। कि मंदिर में एक विशाल सर्प का जोड़ा भी आता है, जो मूल वेदिका की प्रदक्षिणा भी देता है। आज तक इस जोड़े ने किसी को हानि नहीं पहुंचाई। स्थानीय वासियों के द्वारा रात्रि में जिनालय से घण्टे बजने आदि की आवाज आना भी बताया जाता है। क्षेत्र पर यात्रियों के निवास हेतु सर्वसुविधायुक्त धर्मशालायें बनी हुई हैं। क्षेत्र के बाहर प्रथम परिसर में क्षेत्र की कमेटी भोजनालय भी संचालित करती है। मानस्तंभ मंदिर से पूर्व की ओर एक विशाल, सुंदर व मनोरम मानस्तंभ भी स्थित है; जिसमें शीर्ष पर चारों दिशाओं में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमायें विराजमान है। __ क्षेत्र पर 17500 वर्गफीट के विशाल मैदान में चौबीस शिखरों युक्त चौबीसी का निर्माण कार्य भी चल रहा है। जिसमें प्रत्येक वेदिका पर 7 फीट 3 इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमायें विराजमान की जायेंगी। कमठ उपसर्ग को प्रदर्शित करने वाली आकृतिओं का निर्माण भी प्रस्तावित है। श्रद्धालुओं को चाहिये कि वे इस क्षेत्र के अवश्य दर्शन कर पुण्य लाभ कमायें व क्षेत्र के विकास में अपना योगदान दें। मथुरा से हाथरस, सिकंदरा, कासगंज व बदायूं होकर अहिच्क्षेत्र पहुंचा जा सकता है। यह सड़क मार्ग है व मथुरा से अहिच्क्षेत्र की दूरी 210 किलोमीटर है। मध्य-भारत के जैन तीर्व. 193
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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