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________________ अहिच्छेत्र पार्श्वनाथ जहाँ घोर उपसर्ग सहा था; यह स्थान वही है। केवलज्ञान प्राप्त कर पारस, भगवन बने यहीं हैं। उ.प्र. के बरेली जिलान्तर्गत आंवला तहसील में रामनगर किला स्थित अहिच्छत्र पार्श्वनाथ तीर्थ-क्षेत्र जैनियों का वह महान तीर्थ-क्षेत्र है; जहाँ श्री पार्श्वनाथ तीर्थंकर ने घोर उपसर्गों को अपने कर्मों का फल समझ वीतरागता धारणा कर केवलज्ञान प्राप्त किया था। यह वह पावन धरा है; जहाँ नाग योनि से धरणेन्द्र- पद्मावती बने देवों ने स्वर्गलोक से आकर तीर्थंकर के ऊपर हो रहे उपसर्गों को देख अपने फण से उपसर्ग दूर किया था। __ इस स्थान को तिखाल ("आला") वाले बाबा के नाम से जाना जाता है वर्तमान नवीन जिनालय के स्थान पर हजारों वर्ष प्राचीन एक जिनालय था। प्राचीनकाल में जब इस जिनालय का जीर्णोद्धार हो रहा था, उन दिनों रात्रि में मंदिर के पुजारी व माली ने मंदिर के अंदर कुछ काम करने की आवाजें सुनी तो रात्रि में ही उन्होंने मंदिर का ताला खोला, तो यह देख उन्हें आश्चर्य हुआ कि वहां एक दीवाल बनी हुई है, जिसमें एक आले “तिखाल" में भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। निश्चित ही ये दैवीय रचना थी। तभी से इसकी ख्याति 'तिखाल' वाले बाबा के नाम से हो गयी। सन् 1975 में पुनः इस जिनालय का जीर्णोद्धार कराया गया। तब वेदिका को ऊँचा करने हेतु खुदाई में एक जगह आले में दीपक और सिक्का रखा मिला था। जिसे दर्शनार्थियों के लिए एक महीने तक रखा गया। तत्पश्चात् विद्वानों के कहने पर इन्हें वैसा ही रख दिया गया। यह तीर्थ-क्षेत्र सड़क मार्ग पर स्थित है। यात्रियों को अहिच्छत्र पहुँचने के लिये दिल्ली, आगरा व बरेली से ट्रेन द्वारा आंवला या रेवती बहोड़ाखेड़ा स्टेशन पर उतरना चाहिये। यहाँ से अहिच्छत्र के लिये टैक्सियां, बसें, इक्के आदि हमेशा उपलब्ध रहते हैं। ये सभी साधन सीधे अहिच्छत्र के जिनालय के सामने स्थित बस स्टैण्ड पर ही यात्रियों को उतारते हैं। मथुरा, आगरा, अलीगढ़, बरेली व दिल्ली से यह क्षेत्र बस मार्ग से भी जुड़ा है। क्षेत्र तक पक्का, सड़क मार्ग है। रेवती वहोड़ा खेड़ा से क्षेत्र की दूरी 7 किलोमीटर व आंवला से लगभग 20 किलोमीटर है। यही वह तीर्थ भी है। जहाँ वादीश्रेष्ठ, पात्रकेसरी मुनि महाराज ने 7वीं सदी में देवागमस्त्रोत (आप्त मीमांसा) सुनकर अपने 500 शिष्यों के साथ जैनधर्म स्वीकार किया था व जो बाद में विद्यानंद जी मुनि के नाम से विख्यात हुये। बाद में आपने ही 8000 श्लोक प्रमाण अष्टसहस्त्री ग्रंथ व तत्वार्थ सूत्र पर महाभाष्य टीका लिखकर जन-जन का उपकार किया। यहीं किले में एक टीले पर विशाल व ऊँची कुर्सी पर पाषाण का एक 7 फीट ऊँचा स्तंभ है; जो भग्न मानस्तंभ का हिस्सा प्रतीत होता है। खुदाई करने पर यहाँ प्राचीन जिनालय के अवशेष व मूर्तियां प्राप्त हो सकती हैं। पास ही एक अन्य मध्य-भारत के जैन तीर्च- 189
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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