________________
में भी एक विशाल जिनालय स्थित है। जिसके ऊपरी तल पर तीन विशाल वेदियां हैं, जिनमें सौ से अधिक जिन-प्रतिमायें विराजमान हैं।
यहाँ से शौरीपुर की दूरी मात्र 2.5 किलोमीटर की है। यमुना किनारे यह पवित्र क्षेत्र ही 22वें तीर्थंकर भगवान श्री नेमिनाथ स्वामी की गर्भ व जन्मभूमि है। इस पवित्र भूमि पर भगवान नेमिनाथ की चरण छत्रियां भी स्थित हैं। एक विशाल परिसर में दो भव्य जिनालय स्थित हैं। प्रथम जिनालय में काले पत्थर की भगवान श्री नेमिनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में अति आकर्षक.व कलापूर्ण प्रतिमा विराजमान हैं। दूसरे जिनालय में तीन वेदिकायें हैं, मध्य की वेदिका पर पद्मासन मुद्रा में भगवान श्री नेमिनाथ की लगभग 4 फीट अवगाहना की मनोज्ञ मूर्ति विराजमान हैं। जिसके दर्शन मात्र से कर्मों का क्षय होता है। बटेश्वर में यात्रियों को रुकने के लिये विशाल धर्मशाला भी स्थित है। पास में प्राचीन श्वेतांबर जिनालय भी स्थित है। बटेश्वर स्थित जिनालय में तलभाग में अतिशयकारी भगवान श्री अजितनाथ की प्रतिमा विराजमान है, यह प्रतिमा अतिप्राचीन है व पाषाण खण्ड पर उत्कीर्ण पद्मासन मुद्रा में है।
कुडलपुर यह अंतिम तीर्थेश भगवान श्री महावीर स्वमी की गर्भ, जन्म व दीक्षा कल्याणक भूमि है। यहाँ एक परिसर में श्वेतवर्ण की पद्मासन मुद्रा में लगभग 6 फीट ऊँची विशाल व मनोज्ञ प्रतिमा भगवान श्री महावीर स्वामी की विराजमान है। यहीं जिनालय के सामने स्थित चबूतरे पर भगवान श्री महावीर स्वामी के चरण-चिह्न स्थापित हैं। यह जन्मभूमि प्राचीनतम नालंदा के समीप एक वृहद परिसर में स्थित है वर्तमान में यह झारखंड राज्य में स्थित है। यहीं पर पू. आर्यिका ज्ञानमती माताजी के सदप्रयासों से नंधावर्त नामक राजमहल का निर्माण किया गया है, जो अंतिम तीर्थंकर महावीर की बाल-लीलाओं एवं क्रीड़ाओं की स्थली रहा है।
188 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ