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खड्गासन में लगभग 30 फीट ऊँची, अतिमनोज्ञ है। कहा जाता है कि जब इस प्रतिमा को खड़ा किया जाना था; तो लाख कोशिशों के बावजूद भी इसे खड़ा नहीं किया जा सका। तब प्रतिष्ठाकारक ने स्वयं आकर स्तुति व विनती की। ऐसा करने पर प्रतिमा आसानी से खड़ी हो गई।
यहाँ आसपास के ग्रामवासी व तीर्थयात्री मनौती लेकर आते हैं; और उनकी मनोकामनायें पूर्ण हो जाती है। पहले क्षेत्र के चारों ओर घना वन था। उसमें भयानक जंगली जानवर विचरण करते रहते थे किन्तु कभी किसी क्रूर पशु ने आज तक किसी तीर्थयात्री को कोई क्षेति नहीं पहुंचाई।
यहाँ के अनेक जिनालयों में अष्टान्हिका व पयूर्षण पर्यों में रात्रि में देवताओं के पूजन-वंदन की संगीतमय ध्वनियां सुनाई देती हैं।
यहाँ आने वाले तीर्थयात्री दर्शन कर चरम आत्मिक शान्ति एवं प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।
इस तीर्थ-क्षेत्र पर जिनालय एक परिक्रमा-पथ पर स्थित है व संख्या में 28 है। जिनालयों का क्रमवार विवरण नीचे दिया जा रहा है
1. पार्श्वनाथ जिनालय- इस जिनालय में 15 फीट से भी अधिक ऊँची मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की फणावली सहित प्रतिमा विराजमान है। पार्श्व भागों पर चार पद्मासन व दो कायोत्सर्ग मुद्रा में छोटी-छोटी प्रतिमायें भी उसी शिलाखंड में उत्कीर्ण की गई हैं। ऊपर यक्ष-यक्षिणियों की मूर्तियां भी दोनों ओर उत्कीर्ण हैं। नीचे पाद्मूल में पार्श्व भागों पर चमर लिये इन्द्र खड़े हैं। इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा सं. 1864 में थूबौन ग्राम के ही निवासी श्री लक्ष्मण मोदी व पंचम सिंघई जी ने करवाई थी। गर्भगृह लगभग 11 x 11 फीट का है। .
2. पार्श्वनाथ जिनालय- इस जिनालय में भी 12 फीट ऊँची भगवान पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा विराजमान है। मूल प्रतिमा के पार्श्व भागों पर दो पद्मासन व दो कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमायें भी मूल प्रस्तर खंड में ही बनीं है। इसका प्रतिष्ठाकाल सं. 1869 है। इस जिनालय का गर्भगृह भी उपरोक्त जिनालय के समान ही है।
3. आगे चलकर हम एक दालाननुमा बरामदे में पहुंचते हैं। बरामदे से सटे तीन कमरे हैं। तीनों कमरों में जिनबिम्ब स्थापित है। प्रथम कक्ष में भगवान आदिनाथ, भगवान शान्तिनाथ व भगवान महावीर स्वामी की खड्गासन मुद्रा में प्रतिमायें विराजमान है। तीनों जिन-प्रतिमाओं की अवगाहना क्रमशः 5, 7.5 व 4.5 फीट के लगभग है। इन जिन-प्रतिमाओं का प्रतिष्ठाकाल सं. 1694 है।
4. नेमिनाथ जिनालय- मध्य के कक्ष में मूलनायक के रूप में भगवान नेमिनाथ जी की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा विराजमान है। इस प्रतिमा की अवगाहना 5 फीट है। इस जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा 1872 में हुई थी। ऊपर दो पद्मासन जिनबिम्ब भी उत्कीर्ण हैं। पाद्मूल के पार्श्व भागों में हाथी पर चावरधारी 144 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ