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लगभव 20 फीट ऊँची भगवान बाहुबली की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित है, जो यात्रियों को दूर से ही दिखाई पड़ती है ।
9. इसके आगे एक उच्च भूमि पर 6-7 इंच अवगाहना की एक छोटी सी तीर्थंकर प्रतिमा उच्च भूमि पर विराजमान है ।
10. महावीर जिनालय - पहाड़ी के ऊपर स्थित परिक्रमा पथ का यह पहला जिनालय है। इस जिनालय में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की पद्मासन मुद्रा में मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है।
11. पास ही पार्श्वनाथ जिनालय में पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा पद्मासन में आसीन है
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12. क्षेत्र पर स्थित जिनालयों के बीच-बीच में एक भव्य व आकर्षक चौबीसी बनीं हुई है। पृथक-पृथक बने इन छोटे-छोटे जिनालयों में क्रमशः चौबीस तीर्थकरों की प्रतिमायें विराजमान हैं। ये सभी जिन - प्रतिमायें 1 फीट 9 इंच ऊँची पद्मासन मुद्रा में आसीन हैं । इनका प्रतिष्ठाकाल वीर नि. सं. 2484 है।
13. महावीर जिनालय- इसी चौबीसी के बीच बना यह प्रथम विशाल जिनालय है; जिसमें भगवान महावीर स्वामी की 4 फीट ऊँची मनोज्ञ प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में विराजमान है। इसका प्रतिष्ठाकाल भी वीर नि. सं. 2484 ही है। इस वेदिका पर एक धातु प्रतिमा भी प्रतिष्ठित है ।
14. बाहुबली जिनालय - चौबीसी के मध्य स्थित इस जिनालय में भगवान बाहुबली स्वामी की कायोत्सर्ग मुद्रा में लगभग 7 फीट ऊँची भव्य व आकर्षक प्रतिमा विराजमान है । प्रतिष्ठाकाल सं. 2484 ही है ।
15. आदिनाथ जिनालय - इस जिनालय में वी. नि. सं. 2484 की प्रतिष्ठित मनोहारी लगभग 3 फीट 9 इंच ऊँची भगवान आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। आगे एक पाषाण पर यहीं सर्वतोभद्र रचना भी देखने को मिलती है ।
16. शान्तिनाथ जिनालय - भगवान शान्तिनाथ की मनोहारी प्रतिमा स्थित यह जिनालय पहाड़ी का अंतिम जिनालय है । यह प्रतिमा भी पद्मासन मुद्रा में विराजमान अतिमनोज्ञ है। मूर्ति के आगे चरण विराजमान हैं। चरण चौकी पर अष्ट मंगल द्रव्य भी उत्कीर्ण हैं।
17. एक गुफा में सुकौशल मुनिराज की तपस्यारत प्रतिमा बनी हुई है; जिसमें मुनिराज को आत्मध्यान मुद्रा में दिखाया गया है ।
पहाड़ी पर कुछ अन्य प्राकृतिक दृश्य व रचनायें भी दर्शनीय हैं। रात्रि में पहाड़ी से जबलपुर शहर का रोमांचित कर देने वाला नजारा देखा जा सकता है। सड़क पर उच्च शिक्षा अध्ययनरत विद्यार्थियों की सुविधा हेतु गुरुकुल भी संचालित है । इस स्थान पर भी एक जिनालय बना हुआ है । मुनिओं के ठहरने हेतु यहाँ अच्छी व्यवस्था है ।
126 ■ मध्य-भारत के जैन तीर्थ