SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मढ़िया जी (जबलपुर) मढ़िया जी जबलपुर में स्थित नवोदित तीर्थ-क्षेत्र है। जबलपुर में हनुमान तालाब व उसके आसपास स्थित जिनालय दर्शनीय हैं। हनुमानताल स्थित भव्य व आलीशान जिनालय मुगल शैली का बना है, जिसमें शिखरों के स्थान पर गुंबद बने हैं। इस जिनालय में 22 वेदिओं पर सैकड़ों जिन-प्रतिमायें विराजमान हैं। इस जिनालय में दो तलों पर वेदिका हैं। इसे पार्श्वनाथ जिनालय कहते हैं। लार्डगंज स्थित जिनालय भी एक आलीशान जिनालय है जिसमें दो तलों में 11 वेदिओं पर सैंकड़ों जिनबिम्ब विराजमान हैं। यह जिनालय भी मुगल शैली में बना है व विशाल परिसर में स्थित है। सराफा बाजार में स्थित पंचायती मंदिर के जिनालय में प्राचीन पीतल की नंदीश्वर जिनालय की रचना है। __ मढ़िया जी में यात्रियों को ठहरने के लिये आधुनिकतम सभी सुविधायें धर्मशालाओं में उपलब्ध हैं। यहाँ बगीचा है, सुंदर पहाड़ी है, प्राकृतिक घने वृक्षों पर उछलते कूदते बंदर हैं और आध्यात्मिक शान्ति तो यहां है ही। रात्रि में दुधिया रोशनी में यह क्षेत्र अलकापुरी सा सुंदर प्रतीत होता है। यह तीर्थ-क्षेत्र जबलपुर-नागपुर सड़क मार्ग पर स्थित है। यह तीर्थ-क्षेत्र पहाड़ी व तलहटी दोनों जगह फैला है। पहाड़ी पर चढ़ने के लिये दो मार्ग हैं; जिस पर जीना (सीढ़ियाँ) बनी हुई हैं। लगभग 300 सीढ़ियाँ चढ़कर हम मढ़ियाजी की पहाड़ी पर पहुँचते हैं। यहाँ से विश्वप्रसिद्ध भेड़ाघाट व धुआंधार जलप्रपात मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह विगत 500 वर्षों से ही प्रकाश में आया तीर्थ-क्षेत्र है। यहाँ पहाड़ी व उसके आसपास पुरातत्व सामग्री बिखरी पड़ी है। कहा जाता है कि उस समय यहाँ गौड़ राजाओं का राज्य था। राजदरबार में एक पेशवा जैन धर्मानुयायी था; इसी ने यहाँ सबसे पहले एक जिनालय बनवाया था। - एक अन्य जनश्रुति के अनुसार जबलपुर में कमानिया दरवाजे के पास एक गरीब विधवा रहती थी; जो आटा पीसकर अपना गुजारा करती थी। एक दिन उसने जैन मुनि का उपदेश सुन एक जिनालय बनवाने की प्रतिज्ञा कर ली। किन्तु उसके पास पैसे की कमी थी। अतः उसने हाथ चक्की से आटा पीसकर पैसा इकट्ठा करने की ठानी। वह दिनभर परिश्रम कर पैसा इक्ट्ठा करती। जब उसके पास कुछ पैसा इक्ट्ठा हो गया तो वह रास्ता साफ कर पहाड़ी पर मंदिर के लिये जगह साफ करने लगी व स्वयं मजदूरी कर मजदूरों के साथ मंदिर बनाने में जुट गई। उसकी मेहनत रंग लाई ऐसा करते देख अन्य श्रद्धालुओं के मन में भी श्रद्धा जागी और देखते ही देखते एक छोटा सा जिनालय बनकर तैयार हो गया। बुढिया की खुशी का ठिकाना नहीं था। शिखर की जगह शिखर पर उसने अपनी चक्की के दोनों पाट चिनवा दिये। जिनालय में श्री जी विराजमान हो गये। तभी से इसे पिसनहारी की मढ़िया के नाम से जाना जाता है। इस जिनालय में आज भी दो 124 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ .
SR No.023262
Book TitleMadhya Bharat Ke Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakashchandra Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year2012
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy