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पनागर
अतिशय क्षेत्र पनागर जबलपुर जिले के पनागर कस्बे में स्थित है; जो जबलपुर से 16 किलोमीटर दूर स्थित है। कहा जाता है कि यहाँ विराजमान प्रतिमा भूगर्भ में स्थित थी। एक रात्रि भट्टारक जी ने स्वप्न में एक स्थान पर जमीन में दबी प्रतिमा दिखी। वे श्रावकों को लेकर गन्तव्य पर गये व खदाई की: जहाँ से उन्हें यह प्रतिमा खुदाई में प्राप्त हुई। यहाँ पहले भट्टारक पीठ रही है। इस छोटे से सुंदर कस्बे में 17 दिगंबर जैन मंदिर हैं। इनमें से चार मंदिर बजरिया में, 2 मंदिर बाजार में, 8 मंदिर रेल्वे लाइन के किनारे अहाते में व 3 मंदिर इस अहाते के बाहर हैं। रेल्वे लाइन के किनारे मंदिर समूह में कुल 12 वेदिकाओं पर तीर्थंकर प्रतिमायें विराजमान हैं। इस क्षेत्र की प्रमुख मूर्ति को लोग जो स्वप्न देकर प्रकट हुई थी, भगवान शान्तिनाथ की मानते हैं। यह प्रतिमा 8.5 फीट ऊँची व लगभग 4 फीट चौड़ी कायोत्सर्ग मुद्रा में आसीन है। यह मूर्ति देशी पाषाण से निर्मित सिलेटी वर्ण की है, जिसके चरणों के नीचे का भाग धरती में दबा हुआ है; अतः प्रतीक चिह्न दिखाई नहीं देता। किन्तु प्रतिमा की बड़ी हुई जटायें व कंधों तक विस्तार्ण जटाओं की तीन लटें देखने से ऐसा आभास होता है कि यह प्रतिमा प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की होनी चाहिये। परिकर में केवल व्याल उत्कीर्ण है, भामंडल नया लगाया गया है।
मूर्तिकला की दृष्टि से यह प्रतिमा कलचुरीकालीन 11वीं सदी के आसपास विनिर्मित होनी चाहिये। एक अन्य जिनालय की वेदी पर भगवान पार्श्वनाथ की लगभग 5 फीट ऊँची 3.25 फीट चौड़ी श्वेत वर्ण की पद्मासन प्रतिमा विराजमान हैं। इस प्रतिमा के शरीर पर धारियां हैं। प्रतिमा सं. 1858 की प्रतिष्ठित है। प्रतिमा मनोहारी व आकर्षक है। एक वेदिका एक नंदीश्वर जिनालय की मनोज्ञ रचना बनी हुई है वेदिका पर भगवान पार्श्वनाथ व भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमायें भी विराजमान हैं; जिनका प्रतिष्ठाकाल क्रमशः सं. 1548 व सं. 1838 है। एक शिलाफलक में श्यामवर्ण की 3 प्राचीन प्रतिमायें भी बनी है। एक बरामदे में 1.5 फीट अवगाहना की काले पाषाण से निर्मित एक प्रतिमा भी रखी हुई हैं; जिसके ऊपर छत्र सुशोभित है, पुष्पवर्षा करते विद्याधर व चेहरे के पीछे भमंडल भी बना हुआ है। गज व चामरधारी इन्द्रों का भी नीचे की ओर उत्कृष्ट अंकन है। यह प्रतिमा पद्मासन में है, किन्तु मूर्ति के दोनों ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर मूर्तियां भी स्थित हैं। इस जैन तीर्थ-क्षेत्र के निकट स्थित तालाब के किनारे छत्रियां बनीं हुई हैं, जिनमें चरण-चिह्न स्थापित है। क्षेत्र के समीप स्थित एक बाड़े में जैन शिल्प के अवशेष भी रखे हैं। कुछ खंडित प्रतिमायें भी यहां रखीं है; जिनमें एक प्रतिमा भगवान आदिनाथ की भी है। इस प्रतिमा के नीचे उनका प्रतीक चिह्न वृषभ उत्कीर्ण है व पादमूल में उनके यक्ष-यक्षिणी गोमुख व चक्रेश्वरी भी उत्कीर्ण है। अम्बिका देवी की मूर्तियां भी यहाँ रखी है।
122 - मध्य-भारत के जैन तीर्थ